सुजलॉन (Suzlon) ऐसा शेयर बन गया था, जिसके बारे में कोई बात नहीं करना चाहता था। लगातार नकारात्मक खबरों से ऐसी धारणा बन गयी थी, मानो इस कंपनी के लिए कोई उम्मीद ही बाकी नहीं हो। अब स्थितियाँ बदलती दिख रही हैं। बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच (बीओए एमएल) की ताजा रिपोर्ट कहती है, “सुजलॉन ने ऐसी तिमाही में अपनी स्थितियों को बदला है, जिस तिमाही में वेस्टास का घाटा दोगुना हो गया है।” वेस्टास पवन टर्बाइन बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी है।
सुजलॉन दिसंबर 2009 की तिमाही से ही लगातार घाटा दिखा रही थी। ऐसे में निवेशकों की बेरुखी स्वाभाविक ही थी। लेकिन अब जनवरी-मार्च 2011 की तिमाही में 431.59 करोड़ रुपये के मुनाफे से इसने बाजार को निश्चित रूप से चौंकाया है। जनवरी-मार्च 2010 में इसे 188.66 करोड़ रुपये का घाटा सहना पड़ा था। इस अच्छे नतीजे के चलते कल सुजलॉन ने शुरुआती कारोबार में 55.15 रुपये का ऊँचा स्तर तो देखा, लेकिन अंत में फिसल कर 52.80 पर रह गया, शुक्रवार से 10 पैसे नीचे ही। शायद बाजार की चाल को लेकर मौजूदा असमंजस और लंबे समय से इस शेयर को लेकर पनपी निराशा की वजह से इन अच्छे नतीजों का असर टिक नहीं पाया।
कंपनी ने कहा है कि वह 2011-12 के दौरान करीब 45% की बढ़त के साथ 260 अरब रुपये की बिक्री हासिल कर सकेगी। साल 2008-09 में कंपनी ने अब तक की सबसे ज्यादा 260.8 अरब रुपये की बिक्री हासिल की थी। यानी सुजलॉन के लिए यह अपने कारोबार में पिछली ऊँचाई को वापस पाने का साल हो सकता है। खास बात यह है कि संकट के दौर से उबरने में खुद भारतीय बाजार ने सुजलॉन की मदद की।
बीओए एमएल की रिपोर्ट कहती है कि सुजलॉन अब अपने सबसे बुरे दौर से बाहर आ रही है। रिपोर्ट ने इसके तीन कारण गिनाये हैं। पहला, सुजलॉन ने अपने मूल आधार यानी भारत के बाजार पर ध्यान देने की रणनीति चुनी। भारत अब दुनिया में पवन ऊर्जा का तीसरा सबसे बड़ा बाजार है, जिसमें सुजलॉन की हिस्सेदारी करीब 50% है। जनवरी-मार्च 2011 की तिमाही में भारतीय बाजार में कंपनी की बिक्री 15% बढ़ी है। दूसरे, सुजलॉन ने चीन जैसे बड़े बाजारों में अपनी कमजोरी को दुरुस्त किया है। तीसरे, ऊँचे मार्जिन वाले ऑफशोर बाजारों पर ध्यान दिया और रीपावर में लागत घटाने की रणनीति अपनायी। रीपावर इसकी 95% हिस्सेदारी वाली सहायक कंपनी है। बीओए एमएल ने सुजलॉन का लक्ष्य भाव 75 रुपये रखा है। यह साल भर का लक्ष्य है, लेकिन मुझे लगता है कि अगर सुजलॉन बीती तिमाही के बेहतर प्रदर्शन को आगे जारी रख सकी तो बाजार उसे पहले ही यह भाव दे देगा।
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Rajeev Ranjan Jha
Source :शेयर मंथन
सुजलॉन दिसंबर 2009 की तिमाही से ही लगातार घाटा दिखा रही थी। ऐसे में निवेशकों की बेरुखी स्वाभाविक ही थी। लेकिन अब जनवरी-मार्च 2011 की तिमाही में 431.59 करोड़ रुपये के मुनाफे से इसने बाजार को निश्चित रूप से चौंकाया है। जनवरी-मार्च 2010 में इसे 188.66 करोड़ रुपये का घाटा सहना पड़ा था। इस अच्छे नतीजे के चलते कल सुजलॉन ने शुरुआती कारोबार में 55.15 रुपये का ऊँचा स्तर तो देखा, लेकिन अंत में फिसल कर 52.80 पर रह गया, शुक्रवार से 10 पैसे नीचे ही। शायद बाजार की चाल को लेकर मौजूदा असमंजस और लंबे समय से इस शेयर को लेकर पनपी निराशा की वजह से इन अच्छे नतीजों का असर टिक नहीं पाया।
कंपनी ने कहा है कि वह 2011-12 के दौरान करीब 45% की बढ़त के साथ 260 अरब रुपये की बिक्री हासिल कर सकेगी। साल 2008-09 में कंपनी ने अब तक की सबसे ज्यादा 260.8 अरब रुपये की बिक्री हासिल की थी। यानी सुजलॉन के लिए यह अपने कारोबार में पिछली ऊँचाई को वापस पाने का साल हो सकता है। खास बात यह है कि संकट के दौर से उबरने में खुद भारतीय बाजार ने सुजलॉन की मदद की।
बीओए एमएल की रिपोर्ट कहती है कि सुजलॉन अब अपने सबसे बुरे दौर से बाहर आ रही है। रिपोर्ट ने इसके तीन कारण गिनाये हैं। पहला, सुजलॉन ने अपने मूल आधार यानी भारत के बाजार पर ध्यान देने की रणनीति चुनी। भारत अब दुनिया में पवन ऊर्जा का तीसरा सबसे बड़ा बाजार है, जिसमें सुजलॉन की हिस्सेदारी करीब 50% है। जनवरी-मार्च 2011 की तिमाही में भारतीय बाजार में कंपनी की बिक्री 15% बढ़ी है। दूसरे, सुजलॉन ने चीन जैसे बड़े बाजारों में अपनी कमजोरी को दुरुस्त किया है। तीसरे, ऊँचे मार्जिन वाले ऑफशोर बाजारों पर ध्यान दिया और रीपावर में लागत घटाने की रणनीति अपनायी। रीपावर इसकी 95% हिस्सेदारी वाली सहायक कंपनी है। बीओए एमएल ने सुजलॉन का लक्ष्य भाव 75 रुपये रखा है। यह साल भर का लक्ष्य है, लेकिन मुझे लगता है कि अगर सुजलॉन बीती तिमाही के बेहतर प्रदर्शन को आगे जारी रख सकी तो बाजार उसे पहले ही यह भाव दे देगा।
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Rajeev Ranjan Jha
Source :शेयर मंथन