Monday, May 16, 2011

अब डीजल (Diesel) के झटके के लिए भी रहें तैयार

पेट्रोल की कीमत में एकदम से 5 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी अगर आपको चौंका गयी हो, तो अब एक और झटके के लिए भी तैयार रहें।


कहा जा रहा है कि डीजल की कीमत भी 3 रुपये प्रति लीटर बढ़ने जा रही है। डीजल, रसोई गैस (एलपीजी) और मिट्टी-तेल (केरोसिन) की कीमतों पर विचार के लिए मंत्री-समूह (जीओएम) की बैठक इस हफ्ते होने वाली है। कागज पर तो सरकार ने पेट्रोल की कीमत तय करने की छूट तेल कंपनियों को दे रखी है। इसलिए पेट्रोल की कीमत तय करने की औपचारिकता के लिए मंत्री-समूह की बैठक जरूरी नहीं थी। लेकिन आज्ञाकारी सरकारी तेल कंपनियों ने विधानसभा चुनावों के नतीजे आ जाने तक का इंतजार बड़ी वफादारी से किया। चुनावों के नतीजे आने के 24 घंटों के भीतर दाम बढ़ाने का फैसला तेल कंपनियों के मुख्यालय में किया गया या शास्त्री भवन में पेट्रोलियम मंत्रालय में या 10, जनपथ में, यह कयास लगाने की जिम्मेदारी आप ही उठायें तो अच्छा है। 
 
पेट्रोल के दाम बढ़ने के मसले पर मैंने पिछले साल फरवरी में जो लिखा था उसमें कुछ खास नहीं बदला है, सिवाय इसके कि उस समय कीमत 44-50 रुपये के आसपास थी जो अब 64-70 रुपये के आसपास हो गयी है। तब मैंने लिखा था कि आपके पेट्रोल का आधा पैसा सरकार को जाता है, फिर भी खैरात (सब्सिडी) का उलाहना आपको सहना पड़ता है।पेट्रोल का गणित अब भी वैसा ही है। तेल कंपनियाँ कच्चा तेल विदेश से मंगाती हैं, उस पर केंद्र सरकार सीमा शुल्क (कस्टम ड्यूटी) लगाती है। उसके बाद कुल 14.35 रुपये का उत्पाद शुल्क (एक्साइज ड्यूटी) का बोझ लदता है बेसिक और अतिरिक्त मिला कर। सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क जाता है केंद्र सरकार के खजाने में। इसके बाद राज्य सरकार भी अपना हिस्सा वसूलती है वैट के जरिये। दिल्ली में 20% वैट है तो आंध्र प्रदेश में 33% तक। 
आपको बार-बार अखबारों और टेलीविजन चैनलों के जरिये यह तो बताया जाता रहा कि तेल कंपनियों का घाटा पूरा करने के लिए दाम कितना बढ़ाने की जरूरत है। बार-बार बताया जाता रहा कि हर लीटर पेट्रोल की बिक्री पर तेल कंपनियाँ 8.50 रुपये का नुकसान उठा रही हैं। लेकिन कहीं यह जिक्र नहीं किया जा रहा कि आप की जेब से निकलने वाले रुपयों का कितना हिस्सा तेल कंपनियों को जा रहा है और कितना हिस्सा सरकारों के खजाने में। यह हिसाब ठीक से आपके सामने रखा जाये तो दाम बढ़ाने का पूरा तर्क ही बेकार हो जाये। काहे की सब्सिडी जी, आप सरकारों की गाड़ी चला रहे हैं, सरकारें आपकी गाड़ी नहीं चला रहीं।
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Rajeev Ranjan Jha
Source :शेयर मंथन,