बात शेयर बाजार से जरा अलग हट कर है, लेकिन इसका जिक्र इसलिए कि यह खेल बाजार में ऑपरेटरों के खेल से काफी मिलता है।
ऑपरेटर भी टोपी पहनाने के खेल में लगे रहते हैं। कुछ लोग अनजाने में टोपी पहन लेते हैं, तो कुछ लोग जान-बूझ कर भी वह टोपी पहनते हैं – इस उम्मीद में कि जब तक खेल रुकेगा उससे पहले वे टोपी किसी और के सिर पर डाल देंगे और अपना मुनाफा ले कर खेल से निकल चुके होंगे। लेकिन इस खेल में शामिल होने वाले नहीं जानते कि खेल कब रुकना है। इसी चक्कर में टोपी सिर पर ही रह जाती है।
हाल में आपने स्पीक एशिया के विज्ञापन टीवी पर भी देखे होंगे। यह एक अविश्वसनीय कारोबार के बारे में लोगों के बीच भरोसा बनाने की कोशिश है। जरा धंधा समझ लें। यह ऑनलाइन सर्वेक्षण कराने वाली कंपनी है, सर्वेज टुडे नाम से ई-जीन निकालती है। इस ई-जीन का ग्राहक बनने के लिए 06 महीने के 5000 रुपये और 01 साल के 10,000 रुपये देने होते हैं। फिर उस ग्राहक के पास ऑनलाइन सर्वेक्षण फॉर्म आने लगते हैं, जिसमें केवल 12 लाइनों का फॉर्म भरने के लिए मिलते हैं 900 रुपये।
मुझे तो ऐसी कोई देशी-विदेशी कंपनी समझ में नहीं आती, जो इतने ज्यादा पैसों पर स्पीक एशिया से सर्वे कराने के लिए तैयार हो। स्पीक एशिया ने अपने आईसीआईसीआई बैंक और भारती जैसी कई नामी कंपनियों के लिए सर्वे कराने का दावा कर रखा है, जबकि इन सबने इससे कोई सर्वे कराने की बात सिरे से खारिज कर दी है। सफेद झूठ का गोरखधंधा चल रहा है। अगर स्पीक एशिया को किसी से सर्वे कराने का ठेका नहीं मिलता तो वह कैसे लोगों को एक फॉर्म भरने के 900 रुपये दे पा रही है? आपके बाद बनने वाले नये ग्राहकों के पैसे से। यह शुद्ध पोंजी योजना है, जिसमें नये निवेशकों से मिले पुराने निवेशकों को दिये जाते हैं। पुराने निवेशक ही नये निवेशक लाने का काम करते रहते हैं, क्योंकि उन्हें नये निवेशक लाने पर अलग से भुगतान सा लालच दिया जाता है। स्पीक एशिया की तर्ज पर ही काम कर रही कुछ दूसरी कंपनियों ने तो शर्त ही लगा रखी है कि दो और ग्राहक बनवाने के बाद ही आपको फॉर्म भरने के पैसे मिलने शुरू होंगे। यानी जब तक आप और दो लोगों को टोपी नहीं पहनाते, तब तक आपकी टोपी नहीं उतरेगी!
स्पीक एशिया साल भर से भारत में काम कर रही है, किसी दूसरे देश में इसका कामकाज नहीं है, लेकिन यह है सिंगापुर की कंपनी। भारत में इसका कोई दफ्तर भी नहीं है। यह सीधे-सीधे भारत के कानून की गिरफ्त से बचने की तरकीब है। लेकिन अपने देश में विदेशी ठप्पे का असर इतना गहरा है कि लोग सिंगापुर की कंपनी होने की बात सुनते ही झांसे में आ जाते हैं, शक करने के बदले भरोसा कर बैठते हैं।
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Source :Rajeev Ranjan Jha शेयर मंथन
ऑपरेटर भी टोपी पहनाने के खेल में लगे रहते हैं। कुछ लोग अनजाने में टोपी पहन लेते हैं, तो कुछ लोग जान-बूझ कर भी वह टोपी पहनते हैं – इस उम्मीद में कि जब तक खेल रुकेगा उससे पहले वे टोपी किसी और के सिर पर डाल देंगे और अपना मुनाफा ले कर खेल से निकल चुके होंगे। लेकिन इस खेल में शामिल होने वाले नहीं जानते कि खेल कब रुकना है। इसी चक्कर में टोपी सिर पर ही रह जाती है।
हाल में आपने स्पीक एशिया के विज्ञापन टीवी पर भी देखे होंगे। यह एक अविश्वसनीय कारोबार के बारे में लोगों के बीच भरोसा बनाने की कोशिश है। जरा धंधा समझ लें। यह ऑनलाइन सर्वेक्षण कराने वाली कंपनी है, सर्वेज टुडे नाम से ई-जीन निकालती है। इस ई-जीन का ग्राहक बनने के लिए 06 महीने के 5000 रुपये और 01 साल के 10,000 रुपये देने होते हैं। फिर उस ग्राहक के पास ऑनलाइन सर्वेक्षण फॉर्म आने लगते हैं, जिसमें केवल 12 लाइनों का फॉर्म भरने के लिए मिलते हैं 900 रुपये।
मुझे तो ऐसी कोई देशी-विदेशी कंपनी समझ में नहीं आती, जो इतने ज्यादा पैसों पर स्पीक एशिया से सर्वे कराने के लिए तैयार हो। स्पीक एशिया ने अपने आईसीआईसीआई बैंक और भारती जैसी कई नामी कंपनियों के लिए सर्वे कराने का दावा कर रखा है, जबकि इन सबने इससे कोई सर्वे कराने की बात सिरे से खारिज कर दी है। सफेद झूठ का गोरखधंधा चल रहा है। अगर स्पीक एशिया को किसी से सर्वे कराने का ठेका नहीं मिलता तो वह कैसे लोगों को एक फॉर्म भरने के 900 रुपये दे पा रही है? आपके बाद बनने वाले नये ग्राहकों के पैसे से। यह शुद्ध पोंजी योजना है, जिसमें नये निवेशकों से मिले पुराने निवेशकों को दिये जाते हैं। पुराने निवेशक ही नये निवेशक लाने का काम करते रहते हैं, क्योंकि उन्हें नये निवेशक लाने पर अलग से भुगतान सा लालच दिया जाता है। स्पीक एशिया की तर्ज पर ही काम कर रही कुछ दूसरी कंपनियों ने तो शर्त ही लगा रखी है कि दो और ग्राहक बनवाने के बाद ही आपको फॉर्म भरने के पैसे मिलने शुरू होंगे। यानी जब तक आप और दो लोगों को टोपी नहीं पहनाते, तब तक आपकी टोपी नहीं उतरेगी!
स्पीक एशिया साल भर से भारत में काम कर रही है, किसी दूसरे देश में इसका कामकाज नहीं है, लेकिन यह है सिंगापुर की कंपनी। भारत में इसका कोई दफ्तर भी नहीं है। यह सीधे-सीधे भारत के कानून की गिरफ्त से बचने की तरकीब है। लेकिन अपने देश में विदेशी ठप्पे का असर इतना गहरा है कि लोग सिंगापुर की कंपनी होने की बात सुनते ही झांसे में आ जाते हैं, शक करने के बदले भरोसा कर बैठते हैं।
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Source :Rajeev Ranjan Jha शेयर मंथन