आपने निवेश के लिए जो पोर्टफोलियो तैयार किया है वह अच्छा है या ठीक ठाक, इसका पता लगाना इतना आसान नहीं है। एक ही पोर्टफोलियो के बारे में अलग अलग लोगों की राय अलग अलग हो सकती है। या फिर यह भी हो सकता है कि जो पोर्टफोलियो आपके लिए फायदेमंद हो, वह दूसरे निवेशक के लिए न हो। किसी भी व्यक्ति के लिए सबसे अच्छा पोर्टफोलियो कौन सा है यह पता लगाने के लिए उस व्यक्ति की जोखिम उठाने की क्षमता, नकदी की उसकी जरूरतें, लक्ष्य और निवेश से उसे कर में कितनी छूट चाहिए, इन सब बातों पर विचार करना जरूरी होगा।
चलिए हम 25 वर्षीय अश्विनी मुगड का उदाहरण ही ले लेते हैं जो सॉफ्टवेयर क्षेत्र से जुड़ी हैं। उन्होंने कहीं पढ़ा कि युवावस्था में इक्विटी में निवेश करना बेहतर रहता है क्योंकि तब निवेशक ज्यादा जोखिम उठाने की स्थिति में रहता है। छह महीने पहले ही उन्होंने शेयरों में निवेश करना शुरू किया। मगर टेलीकॉम (2जी) विवाद सुर्खियों में आने के बाद ही उनका पोर्टफोलियो 30 फीसदी घट गया। इस नुकसान के बाद अश्विनी अब शेयर बाजार से दूर रहना चाहती हैं। उनके पिता ने उन्हें सुझाव दिया कि वह शेयर बाजार से अपने पैसे को निकाल कर उसे जमा खातों में डाल दें जहां उन्हें 8.5 फीसदी से अधिक का ब्याज मिलेगा। अश्विनी कहती हैं, 'पोर्टफोलियो बनाने की दिशा में यह मेरा पहला कदम था। मुझे एहसास हुआ कि कम उम्र की होने के बाद भी मेरे लिए निवेश के परंपरागत तरीके ही बेहतर हैं।
दरअसल अश्विनी ने जब निवेश करना शुरू किया तो उन्होंने कई गलतियां कीं। एक आदर्श पोर्टफोलियो वही होता है जिसमें कम से कम जोखिम और अधिक से अधिक प्रतिफल की संभावना हो। अच्छे पोर्टफोलियो के जरिए आपका उद्देश्य वित्तीय संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल कर एक तय अवधि तक वित्तीय लक्ष्य को हासिल करना हो।
संपत्ति का आवंटन: सबसे पहले यह फैसला लेना होगा कि आप किन क्षेत्रों में निवेश करना चाहते हैं। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आप कितना जोखिम उठा सकते हैं और आपके पास अपना वित्तीय लक्ष्य हासिल करने के लिए कितना समय है। दरअसल इस मामले में जोखिम उठाने की क्षमता का मतलब यह है कि बेहतर रिटर्न पाने के लिए क्या आप अपने निवेश का कुछ हिस्सा या पूरा हिस्सा जोखिम में डाल सकते हैं। उदाहरण के लिए अगर कोई निवेश की शुरुआत कर रहा है तो उसे बैलेंस्ड फंड या एक्सचेंज ट्रेडेड फंड में निवेश कर सकता है। जब निवेशक को इक्विटी या डेट से जुड़े जोखिम की समझ आने लगे तो वह फिर अपनी मर्जी और जरूरत के हिसाब से ऐसेट वर्ग में निवेश घटा या बढ़ा सकता है। संपत्ति का आवंटन तभी फायदेमंद होता है जब निवेशक एक संसाधन से होने वाले फायदे को दूसरे संसाधन के लिए इस्तेमाल करे ताकि संतुलन बना रहे।
निवेश का लक्ष्य: आप अपना पैसा कहां लगाएं यह इस बात पर भी निर्भर करेगा कि आपका लक्ष्य क्या है। अगर आप सेवानिवृत्ति के लिए पैसे बचा रहे हैं तो आप अपने निवेश का एक बड़ा हिस्सा इक्विटी में डाल सकते हैं। वहीं दूसरी ओर मान लीजिए कि आप पैसे इसलिए जमा कर रहे हैं ताकि 3 साल बाद आप एक कार खरीद सकें तो फिर आपको अपने निवेश का ज्यादातर हिस्सा डेट में डालना चाहिए।
वहीं ऐसे निवेश जो एक तय समय के लिए किए जा रहे हों जैसे कि बच्चों की पढ़ाई, उनकी शादी और इस तरह के दूसरे काम तो भी आपके लिए पैसे डेट में लगाना ही उचित होगा। लंबी अवधि के लक्ष्यों के लिए इक्विटी में निवेश किया जा सकता है- लक्ष्य जितना दूर रहेगा, इक्विटी में निवेश उतना अधिक किया जा सकता है। मगर जैसे ही आप अपने लक्ष्य के करीब आने लगें तो 3 साल पहले ही इक्विटी में लगे पैसे को निकालकर डेट में डाल लें। इस तरह आपको अच्छा प्रतिफल भी मिल सकेगा और आखिर समय में इक्विटी में उतार चढ़ाव के खतरे से आप अपने निवेश को बचाए भी रख सकेंगे।
कैसे बनाएं पोर्टफोलियो: आप अपने लिए निवेश के विकल्पों को खुद परखें। अगर आपकी उम्र कम है तो आप अपने पैसे को अलग-अलग हिस्सों में स्टॉक, म्युचुअल फंड, बॉन्ड, लोक भविष्य निधि (पीपीएफ) और बैंक के जमा खातों में डाल सकते हैं। आप अपने निवेश का ज्यादा हिस्सा स्टॉक या इक्विटी आधारित म्युचुअल फंडों में लगा सकते हैं। जब आप सीधे शेयरों में पैसा लगा रहे हों तो कुछ निवेश ऐसे शेयरों में भी करें जहां आपको लाभांश मिलेगा कयोंकि अगर बाजार में तेजी नहीं भी रहती है तो भी आपको लाभांश से मुनाफा हो सके।
कोशिश करें कि हमेशा निवेश के सस्ते विकल्पों को चुनें। मान लीजिए कि आप इक्विटी में निवेश करना चाहते हैं। अधिकांश ब्रोकर ऑफलाइन की तुलना में ऑनलाइन निवेश के लिए कम ब्रोकरेज वसूलते हैं। ठीक इसी तरह म्युचुअल फंडों के मामले में प्रवेश शुल्क भले ही न हो, पर अगर आप एक तय अवधि के पहले पैसे निकाल लेते हैं तो कुछ फंड हाउस कुछ योजनाओं के लिए निर्गम शुल्क वसूलते हैं। ऐसे में अपने निवेश पर लगातार नजर बनाए रखें। ऐसा करने पर आपको पता रहेगा कि आप अपने निवेश संबंधी जो फैसला ले रहे हैं वह सही है या आपको उसे और समझने की जरूरत है। निवेश करते वक्त आप कर बचत का भी ध्यान रखें। कुछ संसाधनों में निवेश से मिलने वाला प्रतिफल जैसे पीपीएफ, कर-मुक्त बॉन्ड और शेयरों/म्युचुअल फंडों से मिलने वाला लाभांश कर मुक्त होता है।
पोर्टफोलियो में बदलाव करें: आप जरूरत और समय के हिसाब से अपने निवेश पोर्टफोलियो में बदलाव कर सकते हैं। हालांकि थोड़े थोड़े समय में इसमें बदलाव करना चतुराई नहीं होगा क्योंकि इससे आप पर ट्रांजैक्शन शुल्क और कर का बोझ पड़ेगा, मगर आप साल में एक बार अपने पोर्टफोलियो में बदलाव पर विचार कर सकते हैं। एक निश्चित समय पर पोर्टफोलियो में बदलाव करने से बेहतर होगा कि आप अपने पोर्टफोलियो में तब बदलाव करें जब निवेश में संतुलन बनाने की जरूरत महसूस हो। आप अपने निवेश का कुछ हिस्सा निकालकर बेहतर प्रदर्शन करने वाले संसाधनों में भी लगा सकते हैं। एक बार पोर्टफोलियो बनाकर लंबे समय के लिए निश्चिंत हो जाने से बेहतर इस रवैये को अपनाना होगा।
कर का भी रखें ध्यान: निवेश से प्राप्त होने वाले प्रतिफल के लिए कर का भी ध्यान रखें। आपके पोर्टफोलियो में ऐसा निवेश जरूर होना चाहिए जिसका प्रतिफल कर से मुक्त हो। कई बार कर अदायगी में छूट की सीमा में इससे फायदा होता है। आपका प्रतिफल निचले दायरे में आ जाता है और आप अधिक कर बचा पाते हैं।
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स्रोत : बीएस
चलिए हम 25 वर्षीय अश्विनी मुगड का उदाहरण ही ले लेते हैं जो सॉफ्टवेयर क्षेत्र से जुड़ी हैं। उन्होंने कहीं पढ़ा कि युवावस्था में इक्विटी में निवेश करना बेहतर रहता है क्योंकि तब निवेशक ज्यादा जोखिम उठाने की स्थिति में रहता है। छह महीने पहले ही उन्होंने शेयरों में निवेश करना शुरू किया। मगर टेलीकॉम (2जी) विवाद सुर्खियों में आने के बाद ही उनका पोर्टफोलियो 30 फीसदी घट गया। इस नुकसान के बाद अश्विनी अब शेयर बाजार से दूर रहना चाहती हैं। उनके पिता ने उन्हें सुझाव दिया कि वह शेयर बाजार से अपने पैसे को निकाल कर उसे जमा खातों में डाल दें जहां उन्हें 8.5 फीसदी से अधिक का ब्याज मिलेगा। अश्विनी कहती हैं, 'पोर्टफोलियो बनाने की दिशा में यह मेरा पहला कदम था। मुझे एहसास हुआ कि कम उम्र की होने के बाद भी मेरे लिए निवेश के परंपरागत तरीके ही बेहतर हैं।
दरअसल अश्विनी ने जब निवेश करना शुरू किया तो उन्होंने कई गलतियां कीं। एक आदर्श पोर्टफोलियो वही होता है जिसमें कम से कम जोखिम और अधिक से अधिक प्रतिफल की संभावना हो। अच्छे पोर्टफोलियो के जरिए आपका उद्देश्य वित्तीय संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल कर एक तय अवधि तक वित्तीय लक्ष्य को हासिल करना हो।
संपत्ति का आवंटन: सबसे पहले यह फैसला लेना होगा कि आप किन क्षेत्रों में निवेश करना चाहते हैं। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आप कितना जोखिम उठा सकते हैं और आपके पास अपना वित्तीय लक्ष्य हासिल करने के लिए कितना समय है। दरअसल इस मामले में जोखिम उठाने की क्षमता का मतलब यह है कि बेहतर रिटर्न पाने के लिए क्या आप अपने निवेश का कुछ हिस्सा या पूरा हिस्सा जोखिम में डाल सकते हैं। उदाहरण के लिए अगर कोई निवेश की शुरुआत कर रहा है तो उसे बैलेंस्ड फंड या एक्सचेंज ट्रेडेड फंड में निवेश कर सकता है। जब निवेशक को इक्विटी या डेट से जुड़े जोखिम की समझ आने लगे तो वह फिर अपनी मर्जी और जरूरत के हिसाब से ऐसेट वर्ग में निवेश घटा या बढ़ा सकता है। संपत्ति का आवंटन तभी फायदेमंद होता है जब निवेशक एक संसाधन से होने वाले फायदे को दूसरे संसाधन के लिए इस्तेमाल करे ताकि संतुलन बना रहे।
निवेश का लक्ष्य: आप अपना पैसा कहां लगाएं यह इस बात पर भी निर्भर करेगा कि आपका लक्ष्य क्या है। अगर आप सेवानिवृत्ति के लिए पैसे बचा रहे हैं तो आप अपने निवेश का एक बड़ा हिस्सा इक्विटी में डाल सकते हैं। वहीं दूसरी ओर मान लीजिए कि आप पैसे इसलिए जमा कर रहे हैं ताकि 3 साल बाद आप एक कार खरीद सकें तो फिर आपको अपने निवेश का ज्यादातर हिस्सा डेट में डालना चाहिए।
वहीं ऐसे निवेश जो एक तय समय के लिए किए जा रहे हों जैसे कि बच्चों की पढ़ाई, उनकी शादी और इस तरह के दूसरे काम तो भी आपके लिए पैसे डेट में लगाना ही उचित होगा। लंबी अवधि के लक्ष्यों के लिए इक्विटी में निवेश किया जा सकता है- लक्ष्य जितना दूर रहेगा, इक्विटी में निवेश उतना अधिक किया जा सकता है। मगर जैसे ही आप अपने लक्ष्य के करीब आने लगें तो 3 साल पहले ही इक्विटी में लगे पैसे को निकालकर डेट में डाल लें। इस तरह आपको अच्छा प्रतिफल भी मिल सकेगा और आखिर समय में इक्विटी में उतार चढ़ाव के खतरे से आप अपने निवेश को बचाए भी रख सकेंगे।
कैसे बनाएं पोर्टफोलियो: आप अपने लिए निवेश के विकल्पों को खुद परखें। अगर आपकी उम्र कम है तो आप अपने पैसे को अलग-अलग हिस्सों में स्टॉक, म्युचुअल फंड, बॉन्ड, लोक भविष्य निधि (पीपीएफ) और बैंक के जमा खातों में डाल सकते हैं। आप अपने निवेश का ज्यादा हिस्सा स्टॉक या इक्विटी आधारित म्युचुअल फंडों में लगा सकते हैं। जब आप सीधे शेयरों में पैसा लगा रहे हों तो कुछ निवेश ऐसे शेयरों में भी करें जहां आपको लाभांश मिलेगा कयोंकि अगर बाजार में तेजी नहीं भी रहती है तो भी आपको लाभांश से मुनाफा हो सके।
कोशिश करें कि हमेशा निवेश के सस्ते विकल्पों को चुनें। मान लीजिए कि आप इक्विटी में निवेश करना चाहते हैं। अधिकांश ब्रोकर ऑफलाइन की तुलना में ऑनलाइन निवेश के लिए कम ब्रोकरेज वसूलते हैं। ठीक इसी तरह म्युचुअल फंडों के मामले में प्रवेश शुल्क भले ही न हो, पर अगर आप एक तय अवधि के पहले पैसे निकाल लेते हैं तो कुछ फंड हाउस कुछ योजनाओं के लिए निर्गम शुल्क वसूलते हैं। ऐसे में अपने निवेश पर लगातार नजर बनाए रखें। ऐसा करने पर आपको पता रहेगा कि आप अपने निवेश संबंधी जो फैसला ले रहे हैं वह सही है या आपको उसे और समझने की जरूरत है। निवेश करते वक्त आप कर बचत का भी ध्यान रखें। कुछ संसाधनों में निवेश से मिलने वाला प्रतिफल जैसे पीपीएफ, कर-मुक्त बॉन्ड और शेयरों/म्युचुअल फंडों से मिलने वाला लाभांश कर मुक्त होता है।
पोर्टफोलियो में बदलाव करें: आप जरूरत और समय के हिसाब से अपने निवेश पोर्टफोलियो में बदलाव कर सकते हैं। हालांकि थोड़े थोड़े समय में इसमें बदलाव करना चतुराई नहीं होगा क्योंकि इससे आप पर ट्रांजैक्शन शुल्क और कर का बोझ पड़ेगा, मगर आप साल में एक बार अपने पोर्टफोलियो में बदलाव पर विचार कर सकते हैं। एक निश्चित समय पर पोर्टफोलियो में बदलाव करने से बेहतर होगा कि आप अपने पोर्टफोलियो में तब बदलाव करें जब निवेश में संतुलन बनाने की जरूरत महसूस हो। आप अपने निवेश का कुछ हिस्सा निकालकर बेहतर प्रदर्शन करने वाले संसाधनों में भी लगा सकते हैं। एक बार पोर्टफोलियो बनाकर लंबे समय के लिए निश्चिंत हो जाने से बेहतर इस रवैये को अपनाना होगा।
कर का भी रखें ध्यान: निवेश से प्राप्त होने वाले प्रतिफल के लिए कर का भी ध्यान रखें। आपके पोर्टफोलियो में ऐसा निवेश जरूर होना चाहिए जिसका प्रतिफल कर से मुक्त हो। कई बार कर अदायगी में छूट की सीमा में इससे फायदा होता है। आपका प्रतिफल निचले दायरे में आ जाता है और आप अधिक कर बचा पाते हैं।
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स्रोत : बीएस