Thursday, May 12, 2016

LIQUID FUNDS...AT A GLANCE

डेट फंड्स में निवेशः डेट फंड्स क्या होते हैं?
डेट फंड ऐसे म्युचुअल फंड हैं जो निवेशकों का पैसा डेट इंस्ट्रूमेंट्स में लगाते हैं। डेट इंस्ट्रूमेंट्स से मतलब - कॉल मनी, बॉन्ड, डिबेंचर्स, सरकारी सिक्योरिटीज, डिपॉजिट सर्टिफिकेट और कमर्शियल पेपर हैं। अलग अलग फाइनेंशियल लक्ष्यों के मुताबिक अलग अलग डेट फंड होते हैं।

डेट फंड कितनी तरह के होते हैं?
डेट फंड कई तरह के होते हैं जैसे लिक्विड फंड, अल्ट्रा शॉर्ट टर्म फंड, शॉर्ट टर्म फंड, गिल्ट फंड, इनकम फंड, क्रेडिट ऑप्युर्चनिटी फंड, मंथली इनकम प्लान और फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान।

लिक्विड फंड्स किसे कहते हैं?
बहुत कम वक्त के लिए निवेश करने वाले फंड लिक्विड फंड कहलाते हैं और लिक्विड फंड को मनी मार्केट फंड भी कहा जाता है। लिक्विड फंड में कुछ दिन से लेकर कुछ हफ्ते तक के लिए निवेश संभव होता है और अगर कुछ ज्यादा पैसा आ गया तो उसे इस फंड में शिफ्ट किया जा सकता है। इन फंड में कोई एक्जिट लोड नहीं लगता है। लिक्विड फंड से रकम तुरंत बैंक अकाउंट में ट्रांसफर हो जाती है और इन फंड्स में बहुत थोड़े वक्त के लिए निवेश कर सकते हैं। ये फंड बहुत कम वक्त की सिक्योरिटीज में निवेश करते हैं और इन सिक्योरिटीज में रकम डूबने का रिस्क ना के बराबर होता है। इनमें निवेश सबसे सुरक्षित लेकिन रिटर्न भी कम होता है।


अल्ट्रा शॉर्ट टर्म फंड्स किसे कहते हैं?
अल्ट्रा शॉर्ट टर्म फंड में कुछ हफ्ते से 3 महीने तक निवेश संभव होता है और लिक्विड फंड के मुकाबले अल्ट्रा शॉर्ट टर्म फंड में रिस्क ज्यादा होता है। दूसरे लॉन्ग टर्म फंड के मुकाबले कम रिस्क होता है और ये एफडी से ज्यादा रिटर्न देते हैं। ये फंड उन निवेशकों के लिए जो अपना पैसा कुछ महीनों के लिए निवेश करना चाहते हैं। ये फंड अपना पोर्टफोलियो थोड़े पीरियड के लिए डेट इस्ट्रूमेंट में रखते हैं और ये फंड सरकारी सिक्योरिटीज, डिपॉजिट सर्टिफिकेट्स, कंपनियों और दूसरे फाइनेंस इंस्टिट्यूशंस में डिपॉजिट करते हैं।

शॉर्ट टर्म फंड्स क्या होते हैं?
शॉर्ट टर्म फंड थोड़े ज्यादा वक्त के निवेश के लिए होते हैं और शॉर्ट टर्म फंड में आमतौर पर 3 महीने से 1 साल तक के लिए निवेश करते हैं। ये फंड 1 साल या कुछ ज्यादा में मैच्योर हो जाते हैं। इसमें सरकारी सिक्योरिटीज और कंपनियों के कमर्शियल पेपर में निवेश किया जाता है और ब्याज दरों में बदलाव की वजह से लिक्विड और अल्ट्रा शॉर्ट टर्म के मुकाबले ज्यादा रिस्क होताहै। शॉर्ट टर्म फंड्स ज्यादा रिस्क उठाने वाले निवेशकों के लिए बेहतर फंड होते हैं।

गिल्ट फंड्स किसे कहते हैं?
केवल सरकारी सिक्योरिटीज में पैसा लगाने वाले फंड गिल्ट फंड कहलाते हैं और गिल्ट फंड सरकारी सिक्योरिटीज के सिवा किसी और डेट इंस्ट्रूमेंट में पैसा नहीं लगाते हैं। गिल्ट फंड में कोई क्रेडिट रिस्क नहीं होता, हालांकि ब्याज दर कम होने का खतरा शामिल होता है। ब्याज दर कम होने पर फंड की वैल्यू कम हो जाती है। गिल्ट फंड शॉर्ट टर्म या लॉन्ग टर्म दोनों तरह के होते हैं। 1.शॉर्ट टर्म गिल्ट फंड में 7 साल तक निवेश किया जा सकता है और 2.लॉन्ग टर्म गिल्ट फंड में 10 साल तक निवेश किया जा सकता है। सरकारी सिक्योरिटीज में पैसा लगाने वाले निवेशकों के लिए गिल्ट फंड्स बेहतर होते हैं। ब्याज दर गिरने के दौर में लॉन्ग टर्म के गिल्ट फंड बेहतर विकल्प होते हैं। इसमें निवेश करने पर कैपिटल गेन टैक्स से छूट मिलती है।

इनकम फंड्स किसे कहते हैं?
इनकम फंड्स अलग अलग तरह के डेट इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करते हैं। इनमें सरकारी सिक्योरिटीज,बॉन्ड्स और डिबेंचर्स शामिल हैं। आम तौर पर ये फंड मीडियम से लॉन्ग टर्म के लिए होते हैं। 2-4 साल तक के निवेश के लिए इनकम फंड्स बेहतर विकल्प हैं और इन फंड्स में ब्याज दर का रिस्क शामिल क्योंकि ये सेकेंडरी डेट मार्केट में ट्रेड करते हैं। इन फंड्स में क्रेडिट रिस्क भी शामिल क्योंकि डेट उठाने वाली कंपनी के डिफॉल्ट होने का डर होता है। इन फंड्स में हाई रिस्क शामिल होता है। ब्याज दर गिरने जो फायदा उठाना चाहते हैं उनके लिए बेहतर फंड हैं।

क्रेडिट ऑपर्च्युनिटी फंड किसे कहते हैं?
ये फंड इनकम फंड की तरह ही होते हैं लेकिन इन फंड्स में रिस्क काफी ज्यादा होती है। इस कैटेगरी के फंड टॉप कंपनियों की जगह इन कंपनियों के बॉन्ड्स और डिबेंचर्स में पैसा लगाते हैं जिनकी क्रेडिट रेटिंग कमजोर होती है। इन फंड्स में रिटर्न्स काफी ज्यादा मिलते हैं लेकिन इन कंपनियों का डिफॉल्ट होने का खतरा ज्यादा होता है। इनमें रिटर्न्स में काफी उतार-चढ़ाव और रिस्क ज्यादा है। केवल उन निवेशकों को यहां पैसा लगाना चाहिए जो इन फंड्स के बारे में पूरी जानकारी रखते हैं।

मंथली इनकम प्लान किसे कहते हैं?
ये फंड निवेशक को हर महीने रेगुलर इनकम देते हैं और मंथली इनकम प्लान में बेहतर रिटर्न मिलते हैं। सीनियर सिटीजन के लिए बेहतर विकल्प होता है और इसमें मूल रकम डूबने का खतरा नहीं होता है। हालांकि कितनी आय होगी इसकी गारंटी नहीं क्योंकि फंड के परफॉर्मेंस का अंदाजा लगाना मुश्किल होता है। हालांकि मंदी के वक्त फंड डिविडेंड देना बंद भी कर सकता है। इस पोर्टफोलियो का 85-90 परसेंट हिस्सा डेट इंस्ट्रूमेंट्स में लगाया जाता है और बाकी बचा हिस्सा इक्विटी में निवेश किया जा सकता है। ये फंड डेट और इक्विटी का मिक्स हैं लेकिन इनमें इक्विटी का हिस्सा ना के बराबर होता है। फंड को टिकाऊ बनाने और निवेश को फायदेमंद बनाने के लिए मकसद से इक्विटी को शामिल किया जाता है।

फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान किसे कहते हैं?
ये प्लान बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट की तरह होते हैं। ये फंड बैंक एफडी के मुकाबले अच्छा ऑप्शन होते हैं और इनमें 9.30-10 फीसदी तक ब्याज मिलता है और इनमें टैक्स बेनेफिट मिलता है। इन फंड में तय मियाद के बाद फंड एसेट बेचकर रिटर्न्स समेत पैसा निवेशक को लौटा दिया जाता है। इसमें निवेशक को मैच्योरिटी की मियाद के बारे में पता होता है, हालांकि निवेशक को रिटर्न्स के बारे में पता नहीं होता है। इस प्लान में पैसा सिक्योरिटीज में निवेश होता है जो एक निश्चित तारीख को मैच्योर होता है। इनमें निवेश का लॉक इन पीरियड होता है। निवेशक को मियाद चुनने की आजादी होती है