आपने एक मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनी का यह विज्ञापन जरूर सुना होगा-‘‘हर एक दोस्त जरूरी होता है.’’ अब यह कितना सही है, यह तो पता नहीं. लेकिन हर एक बीमा जरूरी नहीं होता, यह सौ फ़ीसदी सही है. बीमा कंपनियां मौके की नजाकत को भांपते हुए तरह-तरह की पॉलिसियां बाजार में उतारती रहती हैं.
हाल ही में सिक्किम में आये भूकंप के बाद बहुत से लोग गृह बीमा ( होम इंश्योरेंस ) के बारे में सोचने लगे हैं. यह उदाहरण है कि जब भी आपदाएं आती हैं, लोग उस जोखिम से सुरक्षा के लिए बीमा पॉलिसी की तलाश करने लगते हैं. इस मौके को भुनाने में बीमा कंपनियां भी पीछे नहीं रहती हैं और वे लोगों की चिंता को ध्यान में रखते हुए नयी पॉलिसी लांच करती हैं या फ़िर किसी ऐसी पुरानी पॉलिसी का ही खूब प्रचार करती हैं, जो उस वक्त लोगों को लुभा सके.
जैसे, वर्ष 2008-09 की आर्थिक मंदी के दौरान बाजार में भारी उतार-चढ़ाव होने लगा, तो यूलिप निवेश अवधि में उच्चतम स्तर के एनएवी की गारंटी पेश करने लगे. इसी तरह मंदी की वजह से लोगों की छंटनी शुरू होने पर नौकरी जाने का बीमा लेकर भी कुछ कंपनियां आ गयीं. अब एक बार फ़िर विश्व अर्थव्यवस्था पर संकट के बादल गहरा रहे हैं. ऐसे में नौकरी जाने के बीमे की मांग फ़िर बढ़ सकती है. इस तरह के बीमे किसी खास मौके पर आकर्षित तो करते हैं, पर उन्हें लेने से पहले उसकी उपयोगिता के बारे में गहराई से सोचना चाहिए.
गृह बीमा
जैसा कि नाम से ही जाहिर है, यह बीमा प्राकृतिक आपदाओं और मानव-जनित आपदाओं से आपके घर की सुरक्षा के लिए है. अगर ऐसी किसी आपदा में घर को जो नुकसान पहुंचता है, उसकी भरपाई बीमा कंपनी करती है. आप जिस बैंक से कर्ज लेकर घर बनाते या खरीदते हैं, कई बार वे बैंक भी अपनी सहयोगी बीमा कंपनी का प्लान आपको खरीदने के लिए कहते हैं.
पर बीमा कहां से लेना है, यह आपको तय करना चाहिए. जिस कंपनी से सस्ती और अच्छी कवर देनेवाली बीमा मिले, उससे पॉलिसी लें. बुनियादी तौर पर गृह बीमा दो तरह के होते हैं-एक में भवन के ढांचे को कवर किया जाता है, तो दूसरे में घर के सामान को कवर किया जाता है. इसके अलावा निर्माणाधीन घर का भी बीमा कराया जा सकता है. जब कोई घर बनाना शुरू करता है या निर्माणाधीन मकान खरीदता है, तो यह आशंका भी रहती है कि किसी कारणवश निर्माण के दौरान मकान को नुकसान न हो जाये. इस तरह की आशंका के लिए नेशनल इंश्योरेंस कंपनी की निवास योजना पॉलिसी बहुत काम की है.
इसमें आपदा की स्थिति में होनेवाले नुकसान की भरपाई की जाती है, साथ ही निर्माण से पहले ही पॉलिसीधारक की मौत हो जाती या वह स्थायी तौर पर अपंग हो जाता है, तो निर्माण पूरा करने के लिए राशि दी जाती है. गृह बीमा पॉलिसी अवश्य लेनी चाहिए. पर यह ध्यान जरूर दें कि पॉलिसी के दायरे में कौन-कौन सी आपदाएं आती हैं.
होम लोन का बीमा
जब तक आप होम लोन को पूरी तरह से चुका नहीं देते, आप वास्तव में घर के मालिक नहीं बन पाते हैं. अगर कर्ज की अवधि के दौरान आपको कुछ हो जाता है, तो आपके परिवार से मकान छिन सकता है. इस मुसीबत से बचने के लिए एक ऐसा बीमा चाहिए, जिसमें आपकी इएमआइ कवर हो सकें या पूरे कर्ज की रकम का भुगतान हो सके. इसमें आपके पास दो विकल्प होते हैं. पहला-होम लोन प्रोटेक्शन प्लान, जिसे कर्जदाता बैंक आपको लोन के साथ देता है. दूसरा है विशुद्ध टर्म प्लान, जिसे आप किसी भी बीमा कंपनी से ले सकते हैं.
पहले बात होम लोन प्रोटेक्शन प्लान की. इसमें जैसे-जैसे कर्ज की बकाया रकम घटती जाती है, बीमा कवर का आकार कम होता जाता है. मिसाल के तौर पर, अगर 29 साल के किसी व्यक्ति ने 25 लाख रुपये का होम लोन 20 साल के लिए 10 फ़ीसदी की दर पर लिया है, तो 25 लाख रुपये के होम लोन प्रोटेक्शन प्लान का सिंगल प्रीमियम 64 हजार रुपये के करीब पड़ेगा.
वहीं सालाना प्रीमियम देने पर यह हर साल नौ हजार रुपये के आसपास होगा. मान लीजिए कुछ वर्षो में कर्जदार की मौत हो जाती है और उस वक्त बकाया कर्ज 21 लाख रुपये है, तो होम लोन प्रोटेक्शन प्लान के तहत बीमा कंपनी 21 लाख रुपये सीधे बैंक को या कर्जदार के परिवार को चुका देगी.
होम लोन प्रोटेक्शन प्लान के बजाय टर्म प्लान का विकल्प बेहतर है. जितने का होम लोन लिया गया है, उतने का टर्म प्लान लेकर होम लोन प्रोटेक्शन प्लान से ज्यादा सुरक्षा हासिल की जा सकती है. अगर 29 साल का कोई व्यक्ति 20 साल के लिए 25 लाख का टर्म प्लान लेता है, तो सालाना प्रीमियम 3500 रुपये के करीब पड़ेगा. यह होम लोन प्रोटेक्शन प्लान के सालान प्रीमियम से काफ़ी कम है. इसके अलावा ऋण अवधि के दौरान कभी कर्जदार की मौत होती है, तो उसके परिवार को पूरे 25 लाख रुपये मिलेंगे. इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा कि उस वक्त कर्ज कितना बचा था.
व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा
ऐसी कई जरूरतें हैं, जो स्वास्थ्य बीमा से पूरी नहीं हो सकतीं. अगर कोई किसी हादसे या आतंकी घटना में घायल हो जाता है, तो स्वास्थ्य बीमा से अस्पताल में भरती रहने का तो खर्च मिल जायेगा, पर स्थायी या अस्थायी तौर विकलांग हो जाने की स्थिति में इससे कोई मदद नहीं मिल पायेगी. इसी तरह हादसे में मृत्यु हो जाने पर भी परिवार को कुछ नहीं मिलेगा. ऐसी ही जरूरतों को ध्यान में रख कर बीमा कंपनियों ने व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा पॉलिसी पेश की है. यह पॉलिसी ग्लोबल कवरेज देती है. यह बीमा ऑनलाइन खरीदा जा सकता है. इसमें किसी हेल्थ चेकअप की जरूरत नहीं होती.
कई बीमा कंपनियां क्रेडिट कार्ड से भुगतान पर किस्तों में प्रीमियम चुकाने की सुविधा भी देती हैं. व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा में विकलांगता पर मुआवजा दिया जाता है. 100 फ़ीसदी विकलांगता होने पर बीमा की पूरी रकम का भुगतान कर दिया जाता है. मृत्यु की स्थिति में परिजनों को पूरी बीमा रकम दी जाती है. विकलांगता के दौरान बेरोजगारी से निबटने के लिए बीमाधारक को मासिक मुआवजा दिया जाता है. हादसा किसी की जिंदगी में कभी भी हो सकता है, इसलिए जीवन बीमा और स्वास्थ्य बीमा के साथ निजी दुर्घटना कवर भी जरूर लेना चाहिए.
नौकरी जाने का बीमा
भारत में इस बीमा के बारे में ज्यादा चर्चा नहीं होती थी. लेकिन 2008 की आर्थिक मंदी ने इसके लिए पृष्ठभूमि तैयार कर दी और सबसे पहले आइसीआइसीआइ लोम्बार्ड ने यहां ‘जॉब लॉस कवर’ लांच किया. इसमें नौ प्रमुख बीमारियों और चिकित्सा, एक्सीडेंट की वजह से मृत्यु और स्थायी पूर्ण विकलांगता और नौकरी जाने को शामिल किया गया है. नौकरी जाने की स्थिति में बीमा कंपनी पॉलिसीधारक की तीन मासिक किस्तें चुकता करती है.
बीमारी की वजह से नौकरी जाने पर भी यह लाभ मिलता है. लेकिन अपनी मर्जी से इस्तीफ़ा देने या वीआरएस की स्थिति में यह लाभ नहीं मिलता. जॉब लॉस कवर की अवधि पांच साल होती है. इसके बाद इसे बढ़वाना पड़ता है. वर्तमान आर्थिक परिदृश्य को देखते हुए भारती अक्सा भी जॉब लॉस राइडर लाने जा रही है.
संकट के समय आप जीवन भर के लिए बैकअप चाहते हैं, तो जॉब लॉस कवर की बजाय आकस्मिक फ़ंड बनाना बेहतर है. जॉब लॉस कवर का प्रीमियम बहत ज्यादा होता है. इसलिए इस तरह की पॉलिसी लेना समझदारी नहीं है. प्रीमियम की रकम को समझदारी से निवेश करने पर तीन-चार साल में ठीकठाक फ़ंड बन जायेगा
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स्रोत : प्रभात खबर