एचडीएफसी टैक्ससेवर :
पिछले 14 वर्ष की लंबी अवधि में लगभग हर साल (वर्ष 1999 और 2002 को छोड़कर) अपनी प्रतिस्पद्र्घी कंपनियों को मात देने के बाद फिलहाल यह फंड उसी स्थिति में आ गया है, जिस स्थिति में वर्ष 2007 की चौथी तिमाही में था। वह एकमात्र वर्ष था जब एस ऐंड पी सीएनएक्स 500 में इसका प्रदर्शन कमजोर रहा था। लेकिन अगले ही वर्ष तिमाही नतीजों के मामले में यह शीर्ष पर जा पहुंचा।इसने वर्ष 2008 के न्यूनतम स्तर से उबरकर वर्ष 2009 में तकरीबन 100 फीसदी प्रतिफल दिया।
फिलहाल इस फंड की लगभग आधी परिसंपत्ति बड़ी पूंजी वाली कंपनियों (लार्ज-कैप) में लगी है। ऐसा हमेशा नहीं होता। यह कुछ उन चुनिंदा फंडों में शामिल है, जिनका निवेश स्टैंडर्ड चार्टर्ड पीएलसी की भारतीय डिपॉजिटरी प्राप्तियों में है।
इसकी गिनती ऐसे फंडों में भी होती है, जिनके पोर्टफोलियो में रिलायंस इंडस्ट्रीज शामिल नहीं है। खंडवार आवंटन के बावजूद यह विपरीत दिशा में नहीं जाती। वर्ष 2009 में, जब दूसरे फंड ऊर्जा क्षेत्र में निवेश कर रहे थे, इस फंड ने इस क्षेत्र में केवल 10 फीसदी निवेश किया।
फंड की परिसंपत्ति बढ़ते जाने की वजह से फिलहाल शेयरों की संख्या 55 हो गई है, जो वर्ष 2007 में लगभग 40 थी। बहरहाल, फंड में ऐसे शेयरों की संख्या 23 है, जिनमें 1 फीसदी से कम निवेश है। इन शेयरों में कुल मिलाकर 10 फीसदी निवेश है। निवेश के हिसाब से शीर्ष 5 शेयरों में कुल 22 फीसदी निवेश है। इस तरह इस फंड की विविधता अच्छी है।
आईसीआईसीआई प्रुडेंशियल टैक्स प्लान
लगभग 11 वर्षों की अवधि के दौरान, इस फंड ने मिलाजुला प्रदर्शन किया है। अपवाद स्वरूप छोटी एवं मझोली कंपनियों में निवेश से कुछ साल बढिय़ा प्रतिफल मिला, लेकिन बाजार में गिरावट की स्थिति में इन शेयरों में निवेश की वजह से कई बार नुकसान भी उठाना पड़ा है। वर्ष 2009 में यह फंड 112 फीसदी प्रतिफल देकर शीर्ष पर जा पहुंचा था।
इस फंड के पोर्टफोलियो में बड़ी और मझोली कंपनियों के शेयर हैं। यह फंड बड़ी कंपनियों के शेयरों की प्रमुखता वाला नहीं है, लेकिन ऐसा वक्त आएगा, जब इसके पोर्टफोलियो में बड़ी कंपनियों के शेयरों की भरमार होगी।
वर्ष 2007 के दौरान कई क्षेत्रों में निवेश का प्रदर्शन प्रतिकूल रहा था। इसके पोर्टफोलियो का पांचवां हिस्सा एफएमसीजी और हेल्थकेयर है और इसमें धातु और ऊर्जा क्षेत्रों के शेयरों की कमी थी। ऐसा इसलिए था क्योंकि इसके प्रबंधकों को लगता है कि तेल एवं गैस क्षेत्र के शेयरों की कीमतों में जरूरत से ज्यादा उछाल आई थी, जबकि एफएमसीजी और फार्मा क्षेत्र प्रदर्शन क्षमता से कमतर रही थी। लेकिन, जब वर्ष 2008 में मंदी शुरू हुई, यह फंड औसत से 56 फीसदी नीचे चला गया।
इस क्षेत्र ने एक दांव खेला और बड़ी कंपनियों के शेयरों में निवेश किया, जिसकी वजह से नकदी और ऋण एक्सपोजर लगभग 8 फीसदी के स्तर पर आ गया। इसलिए, वर्ष 2009 में जब बाजार में तेजी शुरू हुई, यह फंड अच्छी स्थिति में लौट आया।
इस फंड के पोर्टफोलियो में 65 शेयर हैं, जिनमें से शीर्ष 5 कंपनियों के शेयरों में कुल मिलाकर 22 फीसदी निवेश है। अलग-अलग क्षेत्रों में निवेश 20 फीसदी तक सीमित है और इसमें 5 फीसदी से ज्यादा बढ़ोतरी नहीं होती। कुछ बड़ी कंपनियों के शेयर इसके अपवाद हैं। पोर्टफोलियो के आधे शेयर बड़ी कंपनियों के हैं। इसके अलावा मझोली और छोटी कंपनियों के शेयरों की संख्या भी कम नहीं है। नतीजतन बाजार गिरने की सूरत में इसे ज्यादा परेशानी नहीं होगी।
रेलिगेयर टैक्स प्लान
इस फंड ने छोटी अवधि में शानदार प्रदर्शन किया है। इसने बाजार में गिरावट वाली स्थिति में बेहतर प्रदर्शन की अपनी क्षमता दिखा दी है। यही वजह है कि निवेशकों को लंबी अवधि में इसका फायदा होगा।
यह फंड बाजार के तमाम क्षेत्रों में निवेश करता है और इस काम में बॉटम-अप एप्रोच का इस्तेमाल करता है। इसका 60 फीसदी निवेश मझोली और छोटी कंपनियों के शेयरों में है। इस फंड में कुल मिलाकर लगभग 35 कंपनियों के शेयर हैं। कुछ लोगों को आशंका थी कि वर्ष 2008 की गिरावट के दौर में यह फंड बढिय़ा प्रदर्शन करेगा। लेकिन यह तकरीबन 50 फीसदी गिरकर कैटेगरी औसत से 6 फीसदी नीचे आ गया, जो बीएसई 100 से कम था।
दरअसल, शेयरों के चयन का तरीका बिलकुल अलग था। वर्ष 2008 के दौरान इसके पोर्टफोलियो में 38 कंपनियों के शेयर थे। इनमें से 16 में सेंसेक्स से ज्यादा गिरावट दर्ज की गई थी। इस फंड ने बॉटम-अप चयन पर फोकस किया था।
फिलहाल यह फंड मल्टी-कैप रणनीति पर चल रहा है। पोर्टफोलियो में बीएसई के स्मॉल-कैप और बीएसई के पीएसयू सूचकांकों के कुछ शेयरों को भी शामिल किया गया है। हर तिमाही में पोर्टफोलियो की समीक्षा
की जाती है।
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स्रोत : बीएस
पिछले 14 वर्ष की लंबी अवधि में लगभग हर साल (वर्ष 1999 और 2002 को छोड़कर) अपनी प्रतिस्पद्र्घी कंपनियों को मात देने के बाद फिलहाल यह फंड उसी स्थिति में आ गया है, जिस स्थिति में वर्ष 2007 की चौथी तिमाही में था। वह एकमात्र वर्ष था जब एस ऐंड पी सीएनएक्स 500 में इसका प्रदर्शन कमजोर रहा था। लेकिन अगले ही वर्ष तिमाही नतीजों के मामले में यह शीर्ष पर जा पहुंचा।इसने वर्ष 2008 के न्यूनतम स्तर से उबरकर वर्ष 2009 में तकरीबन 100 फीसदी प्रतिफल दिया।
फिलहाल इस फंड की लगभग आधी परिसंपत्ति बड़ी पूंजी वाली कंपनियों (लार्ज-कैप) में लगी है। ऐसा हमेशा नहीं होता। यह कुछ उन चुनिंदा फंडों में शामिल है, जिनका निवेश स्टैंडर्ड चार्टर्ड पीएलसी की भारतीय डिपॉजिटरी प्राप्तियों में है।
इसकी गिनती ऐसे फंडों में भी होती है, जिनके पोर्टफोलियो में रिलायंस इंडस्ट्रीज शामिल नहीं है। खंडवार आवंटन के बावजूद यह विपरीत दिशा में नहीं जाती। वर्ष 2009 में, जब दूसरे फंड ऊर्जा क्षेत्र में निवेश कर रहे थे, इस फंड ने इस क्षेत्र में केवल 10 फीसदी निवेश किया।
फंड की परिसंपत्ति बढ़ते जाने की वजह से फिलहाल शेयरों की संख्या 55 हो गई है, जो वर्ष 2007 में लगभग 40 थी। बहरहाल, फंड में ऐसे शेयरों की संख्या 23 है, जिनमें 1 फीसदी से कम निवेश है। इन शेयरों में कुल मिलाकर 10 फीसदी निवेश है। निवेश के हिसाब से शीर्ष 5 शेयरों में कुल 22 फीसदी निवेश है। इस तरह इस फंड की विविधता अच्छी है।
आईसीआईसीआई प्रुडेंशियल टैक्स प्लान
लगभग 11 वर्षों की अवधि के दौरान, इस फंड ने मिलाजुला प्रदर्शन किया है। अपवाद स्वरूप छोटी एवं मझोली कंपनियों में निवेश से कुछ साल बढिय़ा प्रतिफल मिला, लेकिन बाजार में गिरावट की स्थिति में इन शेयरों में निवेश की वजह से कई बार नुकसान भी उठाना पड़ा है। वर्ष 2009 में यह फंड 112 फीसदी प्रतिफल देकर शीर्ष पर जा पहुंचा था।
इस फंड के पोर्टफोलियो में बड़ी और मझोली कंपनियों के शेयर हैं। यह फंड बड़ी कंपनियों के शेयरों की प्रमुखता वाला नहीं है, लेकिन ऐसा वक्त आएगा, जब इसके पोर्टफोलियो में बड़ी कंपनियों के शेयरों की भरमार होगी।
वर्ष 2007 के दौरान कई क्षेत्रों में निवेश का प्रदर्शन प्रतिकूल रहा था। इसके पोर्टफोलियो का पांचवां हिस्सा एफएमसीजी और हेल्थकेयर है और इसमें धातु और ऊर्जा क्षेत्रों के शेयरों की कमी थी। ऐसा इसलिए था क्योंकि इसके प्रबंधकों को लगता है कि तेल एवं गैस क्षेत्र के शेयरों की कीमतों में जरूरत से ज्यादा उछाल आई थी, जबकि एफएमसीजी और फार्मा क्षेत्र प्रदर्शन क्षमता से कमतर रही थी। लेकिन, जब वर्ष 2008 में मंदी शुरू हुई, यह फंड औसत से 56 फीसदी नीचे चला गया।
इस क्षेत्र ने एक दांव खेला और बड़ी कंपनियों के शेयरों में निवेश किया, जिसकी वजह से नकदी और ऋण एक्सपोजर लगभग 8 फीसदी के स्तर पर आ गया। इसलिए, वर्ष 2009 में जब बाजार में तेजी शुरू हुई, यह फंड अच्छी स्थिति में लौट आया।
इस फंड के पोर्टफोलियो में 65 शेयर हैं, जिनमें से शीर्ष 5 कंपनियों के शेयरों में कुल मिलाकर 22 फीसदी निवेश है। अलग-अलग क्षेत्रों में निवेश 20 फीसदी तक सीमित है और इसमें 5 फीसदी से ज्यादा बढ़ोतरी नहीं होती। कुछ बड़ी कंपनियों के शेयर इसके अपवाद हैं। पोर्टफोलियो के आधे शेयर बड़ी कंपनियों के हैं। इसके अलावा मझोली और छोटी कंपनियों के शेयरों की संख्या भी कम नहीं है। नतीजतन बाजार गिरने की सूरत में इसे ज्यादा परेशानी नहीं होगी।
रेलिगेयर टैक्स प्लान
इस फंड ने छोटी अवधि में शानदार प्रदर्शन किया है। इसने बाजार में गिरावट वाली स्थिति में बेहतर प्रदर्शन की अपनी क्षमता दिखा दी है। यही वजह है कि निवेशकों को लंबी अवधि में इसका फायदा होगा।
यह फंड बाजार के तमाम क्षेत्रों में निवेश करता है और इस काम में बॉटम-अप एप्रोच का इस्तेमाल करता है। इसका 60 फीसदी निवेश मझोली और छोटी कंपनियों के शेयरों में है। इस फंड में कुल मिलाकर लगभग 35 कंपनियों के शेयर हैं। कुछ लोगों को आशंका थी कि वर्ष 2008 की गिरावट के दौर में यह फंड बढिय़ा प्रदर्शन करेगा। लेकिन यह तकरीबन 50 फीसदी गिरकर कैटेगरी औसत से 6 फीसदी नीचे आ गया, जो बीएसई 100 से कम था।
दरअसल, शेयरों के चयन का तरीका बिलकुल अलग था। वर्ष 2008 के दौरान इसके पोर्टफोलियो में 38 कंपनियों के शेयर थे। इनमें से 16 में सेंसेक्स से ज्यादा गिरावट दर्ज की गई थी। इस फंड ने बॉटम-अप चयन पर फोकस किया था।
फिलहाल यह फंड मल्टी-कैप रणनीति पर चल रहा है। पोर्टफोलियो में बीएसई के स्मॉल-कैप और बीएसई के पीएसयू सूचकांकों के कुछ शेयरों को भी शामिल किया गया है। हर तिमाही में पोर्टफोलियो की समीक्षा
की जाती है।
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स्रोत : बीएस