हाल के वर्षों में आर्थिक संपन्नता बढऩे के साथ ही उपभोग के कई क्षेत्रों जैसे वाहन, यात्रा और पर्यटन में काफी तेजी आई है। इसके साथ ही निवेशकों का एक ऐसा वर्ग भी उभर कर सामने आया है जो निवेश के पंरपरागत विकल्पों फिक्स डिपॉजिट, बॉन्ड और शेयरों से इतर भी निवेश करने का माद्दा रखता है। निवेशकों का यह नया वर्ग अब रियल एस्टेट, आर्ट आदि में निवेश को तवज्जो दे रहा है। एक ओर जहां आर्ट में निवेश के विकल्प सीमित हैं, वहीं रियल एस्टेट भारतीयों के लिए निवेश के दिलचस्प विकल्प के रूप में सामने आया है। इस क्षेत्र में निवेश दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है।
इस क्षेत्र के परंपगरागत निवेश के विकल्प जैसे भूमि, अपार्टमेंट्स, फार्म हाउस, व्यावसायिक परिसपंत्ति के अलावा आप रियल एस्टेट वेंचर कैपिटल फंड (आरईवीसीएफ) और पोर्टफोलियो मैंनेजमेंट सर्विसेस (पीएमएस) में भी निवेश कर सकते हैं। आरईआईटी/आरईएमएफ छोटे निवेशकों के लिए निवेश के सबसे उपयुक्त विकल्प हैं लेकिन भारत में अभी तक इनकी शुरुआत नहीं हुई है। हालांकि पीएमएस के जरिये आप इस तरह के स्ट्रक्चर्ड प्रोडक्ट में निवेश कर सकते हैं।
शेयरों से भिन्न
भारतीय रियल एस्टेट में फिजिकल इन्वेस्टमेंट कुछ मामलों में शेयरों में निवेश से काफी भिन्न होते हैं। इनमें से जो पहलु प्रमुख हैं, वे हैं-
पारदर्शिता
यह एक बिखरा हुआ क्षेत्र है जिनमें एक संभावित निवेशक की वास्तविक आंकड़ों और मांग और आपूर्ति के संबंध में जानकारी तक पहुंच आसान नहीं होती हैं। यह एक ऐसे निवेशकों के लिए दुखद है जो एक पूर्ण रूप से नियंत्रित शेयर बाजार में निवेश करते हैं।
विपणन
अल्प जानकारी रखने वाला कोई निवेशक सामान्य तौर पर यह मान बैठता है कि रियल एस्टेट क्षेत्र में मांग असीमित है। लेकिन इसके बाद भी शॉर्ट नोटिस पर संपत्ति बेचने में कई लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। दूसरे शब्दों में कहें तो बेचने वाले और खरीदने वाले के बीच आसानी से तालमेल नहीं बैठता है, जबकि शेयर बाजार में ऐसा करना आसान होता है।
तरलता
बिक्री की प्रक्रिया आसान नहीं होने की वजह से तरलता पर असर पड़ता है। लिहाजा उतनी ही राशि का निवेश करना ज्यादा उपयुक्त है जिनकी आपको लघु अवधि में जरूरत नहीं है।
टिकट साइज
एक ओर जहां शेयर बाजार में सभी तरह के निवेशक अपनी किस्मत आजमा सकते हैं, वहीं रियल एस्टेट बाजार धनाढ्य निवेशकों की ही आवश्यकताओं पर ही खरा उतरता है। इसकी वजह यह है कि इस क्षेत्र में न्यूनतम निवेश की राशि लाखों रूपये में होती है वहीं महानगरों में तो यह करोड़ों के आस-पास पहुंच जाती है। रियल एस्टेट में निवेश करने के लिए आरईवीवीएफ एक अपेक्षाकृत आसान जरिया होता है और न्यूनतम टिकट साइज 25 लाख रुपये है। इनकी सरंचना सामान्य तौर पर 7-10 सालों के क्लोड ऐंडेड फंड के रूप में होती है और इसमें दो चरण होते हैं। अवधि के पहले आधे भाग में निवेश होता है और दूसरे भाग में लिक्विडेशन होता है। आरईवीसीएफ में निवेश करते वक्त निम्रिलिखित बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है-
प्रवर्तक का पिछला रिकॉर्ड
इससे दो तरह से मदद मिलती है। एक साफ-सुथरा रिकॉर्ड वाला प्रवर्तक फंड के लिए एक बेहतर सौदा करने में सक्षम होगा, साथ ही इससे छोटे शेयरधारकों के हितों को सुरक्षित रखने में भी मदद मिलती है।
अंतरिम तरलता व्यवस्था: ऐसे फंड का चयन करें जहां प्रवर्तक अंतरिम तरलता की सुविधा प्रदान करते हैं। हालांकि इसके साथ ही पुनर्खरीद के समय मूल्यांकन विधि को लेकर भी सतर्क रहें।एक और बात याद रखी जानी चाहिए कि संपत्ति में निवेश करना और इसे खरीद कर बिक्री करना दोनों अलग-अलग बाते हैं। इसे देखते हुए निम्रलिखित बातों का ध्यान अवश्य रखें-
कर्ज न लें: अपनी क्षमता के अनुसार ही कोई निर्णय लें। अगर आपके पास इस उद्देश्य के लिए पर्याप्त धन है तो ही निवेश की ओर कदम बढ़ाएं, क्योंकि इसमें निवेश लंबे समय के लिए होता है। कर्ज लेकर निवेश करना कतई अच्छा कदम नहीं माना जा सकता है। कर्ज लेने पर मिलने वाले कर लाभ के झांसे में नहीं आएं।
शुरुआत में ही करें खरीदारी: संपत्ति के निर्माण के समय में ही इसकी खरीदारी बेहतर मानी जाती है, क्योंकि तैयार होने के बाद कीमतों में बढ़ोतरी से इनकार नहीं किया जा सकता है। हालांकि, संपत्ति की खरीदारी साफ-सुथरी छवि वाले बिल्डर से ही खरीदें। इससे परियोजना के पूरी होने में देरी का जोखिम भी कम हो जाता है।
व्यावसायिक संपत्ति: इनमें निवेश से न सिर्फ आपको बेहतर प्रतिफल मिलता है, वहीं व्यावसायिक संपत्ति की कीमतों में बढ़ोतरी की संभावनाएं अधिक होती हैं। ऐसे संपत्ति में निवेश करें जो आपके आवास से ज्यादा दूरी पर नहीं हों। वित्तीय संपत्ति के उलट भौतिक संपत्ति की एक निश्चित अंतराल पर देख-रेख और रख-रखाव की जरूरत होती है।
करों का रखे ध्यान
तीन साल तक संपत्ति रखने के बाद इसे बेचने पर ही लंबी अवधि के पूंजी लाभ का अवसर मिलता है। लिहाजा अल्प समय में बेचने के उद्देश्य से खरीदारी न करें।
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Source : BS
इस क्षेत्र के परंपगरागत निवेश के विकल्प जैसे भूमि, अपार्टमेंट्स, फार्म हाउस, व्यावसायिक परिसपंत्ति के अलावा आप रियल एस्टेट वेंचर कैपिटल फंड (आरईवीसीएफ) और पोर्टफोलियो मैंनेजमेंट सर्विसेस (पीएमएस) में भी निवेश कर सकते हैं। आरईआईटी/आरईएमएफ छोटे निवेशकों के लिए निवेश के सबसे उपयुक्त विकल्प हैं लेकिन भारत में अभी तक इनकी शुरुआत नहीं हुई है। हालांकि पीएमएस के जरिये आप इस तरह के स्ट्रक्चर्ड प्रोडक्ट में निवेश कर सकते हैं।
शेयरों से भिन्न
भारतीय रियल एस्टेट में फिजिकल इन्वेस्टमेंट कुछ मामलों में शेयरों में निवेश से काफी भिन्न होते हैं। इनमें से जो पहलु प्रमुख हैं, वे हैं-
पारदर्शिता
यह एक बिखरा हुआ क्षेत्र है जिनमें एक संभावित निवेशक की वास्तविक आंकड़ों और मांग और आपूर्ति के संबंध में जानकारी तक पहुंच आसान नहीं होती हैं। यह एक ऐसे निवेशकों के लिए दुखद है जो एक पूर्ण रूप से नियंत्रित शेयर बाजार में निवेश करते हैं।
विपणन
अल्प जानकारी रखने वाला कोई निवेशक सामान्य तौर पर यह मान बैठता है कि रियल एस्टेट क्षेत्र में मांग असीमित है। लेकिन इसके बाद भी शॉर्ट नोटिस पर संपत्ति बेचने में कई लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। दूसरे शब्दों में कहें तो बेचने वाले और खरीदने वाले के बीच आसानी से तालमेल नहीं बैठता है, जबकि शेयर बाजार में ऐसा करना आसान होता है।
तरलता
बिक्री की प्रक्रिया आसान नहीं होने की वजह से तरलता पर असर पड़ता है। लिहाजा उतनी ही राशि का निवेश करना ज्यादा उपयुक्त है जिनकी आपको लघु अवधि में जरूरत नहीं है।
टिकट साइज
एक ओर जहां शेयर बाजार में सभी तरह के निवेशक अपनी किस्मत आजमा सकते हैं, वहीं रियल एस्टेट बाजार धनाढ्य निवेशकों की ही आवश्यकताओं पर ही खरा उतरता है। इसकी वजह यह है कि इस क्षेत्र में न्यूनतम निवेश की राशि लाखों रूपये में होती है वहीं महानगरों में तो यह करोड़ों के आस-पास पहुंच जाती है। रियल एस्टेट में निवेश करने के लिए आरईवीवीएफ एक अपेक्षाकृत आसान जरिया होता है और न्यूनतम टिकट साइज 25 लाख रुपये है। इनकी सरंचना सामान्य तौर पर 7-10 सालों के क्लोड ऐंडेड फंड के रूप में होती है और इसमें दो चरण होते हैं। अवधि के पहले आधे भाग में निवेश होता है और दूसरे भाग में लिक्विडेशन होता है। आरईवीसीएफ में निवेश करते वक्त निम्रिलिखित बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है-
प्रवर्तक का पिछला रिकॉर्ड
इससे दो तरह से मदद मिलती है। एक साफ-सुथरा रिकॉर्ड वाला प्रवर्तक फंड के लिए एक बेहतर सौदा करने में सक्षम होगा, साथ ही इससे छोटे शेयरधारकों के हितों को सुरक्षित रखने में भी मदद मिलती है।
अंतरिम तरलता व्यवस्था: ऐसे फंड का चयन करें जहां प्रवर्तक अंतरिम तरलता की सुविधा प्रदान करते हैं। हालांकि इसके साथ ही पुनर्खरीद के समय मूल्यांकन विधि को लेकर भी सतर्क रहें।एक और बात याद रखी जानी चाहिए कि संपत्ति में निवेश करना और इसे खरीद कर बिक्री करना दोनों अलग-अलग बाते हैं। इसे देखते हुए निम्रलिखित बातों का ध्यान अवश्य रखें-
कर्ज न लें: अपनी क्षमता के अनुसार ही कोई निर्णय लें। अगर आपके पास इस उद्देश्य के लिए पर्याप्त धन है तो ही निवेश की ओर कदम बढ़ाएं, क्योंकि इसमें निवेश लंबे समय के लिए होता है। कर्ज लेकर निवेश करना कतई अच्छा कदम नहीं माना जा सकता है। कर्ज लेने पर मिलने वाले कर लाभ के झांसे में नहीं आएं।
शुरुआत में ही करें खरीदारी: संपत्ति के निर्माण के समय में ही इसकी खरीदारी बेहतर मानी जाती है, क्योंकि तैयार होने के बाद कीमतों में बढ़ोतरी से इनकार नहीं किया जा सकता है। हालांकि, संपत्ति की खरीदारी साफ-सुथरी छवि वाले बिल्डर से ही खरीदें। इससे परियोजना के पूरी होने में देरी का जोखिम भी कम हो जाता है।
व्यावसायिक संपत्ति: इनमें निवेश से न सिर्फ आपको बेहतर प्रतिफल मिलता है, वहीं व्यावसायिक संपत्ति की कीमतों में बढ़ोतरी की संभावनाएं अधिक होती हैं। ऐसे संपत्ति में निवेश करें जो आपके आवास से ज्यादा दूरी पर नहीं हों। वित्तीय संपत्ति के उलट भौतिक संपत्ति की एक निश्चित अंतराल पर देख-रेख और रख-रखाव की जरूरत होती है।
करों का रखे ध्यान
तीन साल तक संपत्ति रखने के बाद इसे बेचने पर ही लंबी अवधि के पूंजी लाभ का अवसर मिलता है। लिहाजा अल्प समय में बेचने के उद्देश्य से खरीदारी न करें।
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Source : BS