जब किसी देश का निर्यात कम हो जाता है और आयात ज्यादा हो जाता है तो इस स्थिति में करंट अकाउंट डेफिसिट की स्थिति बन जाती है। इससे देश के विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव पड़ता है और कई बार जब डेफिसिट बहुत ज्यादा हो जाता है तो मुद्रा भंडार में विदेशी मुद्रा की कमी भी हो जाती है। जहां तक विकासशील देशों की बात है तो उनके साथ यह समस्या अक्सर आ जाती है। विकासशील देश अपने घरेलू उत्पादन को बढ़ाकर इस समस्या से निपट सकते हैं।
घरेलू उत्पादन बढ़ाकर और उसकी लागत में कमी करके कोई देश अपने निर्यात को बढ़ा सकता है। हालांकि कई बार यह स्थिति बन जाती है कि जिस देश का करंट अकाउंट डेफिसिट ज्यादा हो जाता है तो वह दूसरे देशों का कर्जदार बन जाता है। इसके लिए निर्यात को बढ़ाना पड़ता है और आयात को कम करना पड़ता है। इसके लिए कई सारे कदम उठाए जा सकते हैं।उदाहरण के लिए आयातित वस्तुओं पर सीमा शुल्क बढ़ाकर आयात को कम करने का प्रयास किया जा सकता है। करंट अकाउंट डेफिसिट ज्यादा बढऩे से बैलेंस ऑफ पेमेंट में दिक्कत आती है।अगर स्थिति ज्यादा ही खराब होती जा रही है तो आयात पर प्रतिबंध के विकल्प का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। इसके कारण किसी देश को और कई तरह की समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है।
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स्रोत : दैनिक भास्कर