Tuesday, March 29, 2011

निवेश में हो सभी का समावेश :

अलेक्शा बिंदल ने अपने पैसे एक निजी बैंक के फिक्स्ड डिपॉजिट में जमा कराए हैं जिस पर उन्हें 9.5 फीसदी सालाना की दर से ब्याज मिल रहा है। बिंदल इससे काफी खुश हैं। करीब दो साल पहले उन्होंने निवेश करना शुरू किया था और तब से अब तक उन्होंने इतनी अधिक ब्याज दरें नहीं देखी हैं। बिंदल ने अपना कुछ पैसा इक्विटी में भी लगाया है जिसमें 20 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। अब वह इस उलझन में हैं कि क्या उन्हें इक्विटी में लगा पैसा निकालकर डेट में डाल देना चाहिए या फिर उन्हें इक्विटी में ही छोड़ देना चाहिए।

बिंदल के मन में एक और विचार यह है कि क्या उन्हें अपने निवेश का कुछ हिस्सा दूसरे विकल्पों में डाल देना चाहिए ताकि वे मौजूदा निवेश माहौल के अनुरूप हो सकें। मगर उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि उन्हें अपने निवेश का कितना हिस्सा किस विकल्प में डालना चाहिए। अगर आप भी निवेश संबंधी किसी ऐसी ही उलझन से जूझ रहे हैं तो हम आपको बताते हैं कि आपके लिए क्या बेहतर हो सकता है।

विभिन्न बाजार एक दूसरे से जुड़े होते हैं। जब स्थिर आय वाले इंस्ट्रूमेंट्स पर ब्याज दरें अधिक होती हैं तो इक्विटी बाजार नीचे होता है। ठीक इसी तरह जब इक्विटी बाजार नीचे होता है तो सोने के दाम चढ़े हुए होते हैं। एक उदाहरण से आप यह समझ सकते हैं कि आखिर ऐसा क्यों होता है। मान लीजिए कि किसी कंपनी ए के पास 100-100 करोड़ रुपये की इक्विटी पूंजी और डेट है। ब्याज और कर से पूर्व इसकी आय 20 करोड़ रुपये है। कर्ज पर सालाना 10 फीसदी का ब्याज है। तो ऐसे में ब्याज के बाद और कर से पहले की आय 10 करोड़ रुपये होगी। मान लीजिए कि कर्ज पर ब्याज 10 फीसदी से बढ़कर 12 फीसदी हो जाता है। ऐसे में ब्याज के बाद और कर से पहले आय घटकर 8 करोड़ रुपये हो जाएगी। इस तरह जब ब्याज दरें बढ़ती हैं तो कंपनी का मुनाफा घटता है और जब ब्याज दरें कम होती हैं तो कंपनी का मुनाफा बढ़ता है। परिणामस्वरूप ब्याज दरें घटने से कंपनी की वैल्यू बढ़ती है और इस तरह कंपनी के शेयरों के दाम भी ऊपर चढऩे लगते हैं और इससे ठीक उलट ब्याज दरें बढऩे से कंपनी की वैल्यू घटती है और शेयरों के दाम भी नीचे आते हैं। ब्याज दरों में बदलाव का असर कंपनी की वैल्यू और शेयरों के दाम पर पड़ता है। अगर ब्याज दरें घटती हैं और बाकी सब कुछ स्थिर बना रहता है तो शेयर का भाव भी बढऩा चाहिए। यही वजह है कि जब भारतीय रिजर्व बैंक दरों में कटौती की घोषणा करता है तो बाजार उत्साहित हो जाता है। वहीं इससे उलट अगर आरबीआई दरें बढ़ाता है (और बाकी सब कुछ समान बना रहता है) तो शेयरों के दाम गिरते हैं।

इन दोनों निवेश विकल्पों में विपरीत संबंध होने की एक दूसरी वजह यह है कि जब ब्याज दरें बढऩे लगती हैं तो निवेशक अपना पैसा स्थिर आय वाले इंस्ट्रूमेंट्स में डालने लगते हैं जिससे इक्विटी बाजार में नकदी की किल्लत होने लगती है। सोने और इक्विटी में भी विपरीत संबंध है। लोग अपने निवेश का भाव बढ़ाने के लिए सोने में निवेश करते हैं। महंगाई के दिनों में जब ब्याज दरें चढ़ती हैं तो इक्विटी के दाम घटते हैं। ऐसे में लोग अपने पैसे को सुरक्षित रखने के लिए ज्यादा से ज्यादा सोने में निवेश करने लगते हैं। साथ ही मुद्रास्फीति जब बढ़ी हुई रहती है तो लोग इससे हेजिंग के लिए भी सोने में निवेश करना पसंद करते हैं (मौजूदा समय में कुछ ऐसे ही हालात बन रहे हैं)। निफ्टी, सोने की कीमतें और ब्याज दरों में संबंध को इस टेबल से समझ सकते हैं जिसमें एसऐंडपी सीएनएक्स निफ्टी, गोल्ड बीईईएस (गोल्ड बेंचमार्क एक्सचेंज ट्रेडेड स्कीम) और एक साल के डिपॉजिट के लिए भारतीय स्टेट बैंक की डिपॉजिट दरों को शामिल किया गया है। टेबल में शामिल किए गए आंकड़ों को देखकर पता चलता है कि किस तरह इनमें समय समय पर उतार चढ़ाव देखने को मिला है। 31 मार्च 2007 से लेकर अब तक इन तीनों के बीच के संबंधों की तुलना की गई है।

जैसा कि हम टेबल से देख सकते हैं कि 2007-08 में सभी बाजारों में तेजी की वजह से निफ्टी, गोल्ड बीईईएस और ब्याज दरें बढ़ी हुई थीं। वहीं 2008-09 में निफ्टी में 36 फीसदी की गिरावट देखने को मिली जबकि गोल्डबीईईएस 24 फीसदी ऊपर था। इस तरह इन दोनों के बीच विपरीत संबंध का पता चलता है। इस अवधि में हालांकि ब्याज दरें कमोबेश स्थिर थीं। 2009-10 में निफ्टी 74 फीसदी ऊपर था जबकि गोल्ड बीईईएस में केवल 7 फीसदी की तेजी थी, जिससे इन दोनों के बीच विपरीत संबंध का पता चलता है। इस दौरान ब्याज दरें जबरदस्त तरीके से घटकर 6 फीसदी पर पहुंच गई थीं। इस तरह एक बार फिर से ब्याज दरों और इक्विटी बाजार में विपरीत संबंध का पता चलता है। 2010-11 से अब तक निफ्टी में केवल 9 फीसदी की तेजी आई है जबकि गोल्ड बीईईएस 23 फीसदी चढ़ा है और ब्याज दरें 225 आधार अंक बढ़ चुकी हैं।

अगर 2007-08 को छोड़ दें तो बाकी सभी अवधि में इक्विटी, सोने और ब्याज दरों में विपरीत संबंध साफ देखा जा सकता है। इन तीनों के बीच के संबंध को देखकर निवेशकों को यह समझ जाना चाहिए कि उन्हें अपना पूरा निवेश एक ही विकल्प में नहीं करना चाहिए। अलग अलग विकल्पों में पैसा लगाकर वे जोखिम से बच सकते हैं। इस तरह आपके निवेश पोर्टफोलियो में डेट, इक्विटी, रियल एस्टेट, सोना आदि सभी शामिल होने चाहिए
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Source : business-standard