Monday, March 21, 2011

छोटे आईपीओ में निवेश जोखिम भरा!

बीते तीन साल के दौरान छोटे आईपीओ में शेयर खरीदने वाले निवेशकों को निराश करने वाले एक खुलासे में
पता चला है कि पांच में से चार इश्यू ने उनकी जेब में छेद करने का काम किया है। इस तरह के छोटे इश्यू में निवेश की व्यावहारिकता से जुड़ी चिंताओं के बीच ईटी इंटेलीजेंस ग्रुप आपको सही दांव तलाशने में मदद दे रहा है...

छोटा है, तो बेहतर है। लेकिन यह बात हमेशा लागू होगी, जरूरी नहीं है। कम से कम दलाल स्ट्रीट पर तो ऐसा ही है। सौ करोड़ रुपए से कम की पूंजी जुटाने के लिए बीते तीन साल के दौरान पेश किए गए आईपीओ में कुछ ही ऐसे खिलाड़ी निकले, जो निवेशकों को ठीक-ठाक मुनाफा देने में कामयाब रहे। यह बात सही है कि डेट मार्केट की तुलना में आईपीओ बाजार, छोटे आकार की ऐसी कंपनियों को प्रभावशाली विकल्प मुहैया कराता है, जिन्हें कारोबारी विस्तार के लिए फंड की जरूरत है।

लेकिन इस तरह के सभी उपक्रम अपनी काबिलियत साबित करने में सफल साबित नहीं होते। ईटी इंटेलीजेंस ग्रुप ने लंबी अवधि के विजेताओं को क्षण भर कायम रहने वाली कामयाबी से दूर करने के लक्ष्य के साथ छोटे आईपीओ के प्रदर्शन का विश्लेषण किया।

साल 2008 से शुरू होने वाले तीन साल में बड़ी संख्या में छोटी कंपनियों ने आईपीओ की राह पकड़ी। इनमें से ज्यादातर का उद्देश्य क्षमता विस्तार या नए बाजारों में कदम जमाना था, भले वह सीधे तौर पर पहुंचकर मुमकिन हो या फिर अधिग्रहण के जरिए। इनमें से कई इश्यू आक्रामक अंदाज में छोटे निवेशकों के सामने पेश किए गए और उनसे कुछ कदम दूर खड़ी ग्रोथ की भारी संभावनाएं भुनाने के लिए आगे आने की अपील की। हालांकि, आगे चलकर पता चला कि उनमें से सभी ने अपने वादे नहीं निभाए।

हमने अपने अध्ययन के लिए ऐसे आईपीओ चुने जो छह महीने पहले लॉन्च किए गए थे और इनमें से हरेक ने 100 करोड़ रुपए से कम रकम जुटाई है। हमने उन कंपनियों पर विचार नहीं किया, जिन्हें बीते छह महीने के दौरान सूचीबद्ध कराया गया है, क्योंकि उनके शेयरों को स्टॉक एक्सचेंज में स्थिरता की स्थिति तक पहुंचने में कुछ ज्यादा वक्त लग सकता है।

कैपिटल गुड्स, फार्मा, इंफोटेक, टेक्सटाइल, केमिकल और स्टील जैसे विभिन्न सेक्टरों में कुल 41 आईपीओ पेश किए गए। इसके बाद हमने इनके मौजूदा शेयर भाव की तुलना शुरुआत में पेश की गई कीमत या ऑफर प्राइस से की।

विश्लेषण से खुलासा हुआ कि सैम्पल में शामिल 80 फीसदी या हर पांच में से चार आईपीओ रिटर्न जुटाने में नाकाम रहे। पोरवाल ऑटो कम्पोनेंट्स और नु टेक जैसे शेयर 2008 में हुई लिस्टिंग से अब तक ऑफर प्राइस से 90 फीसदी नीचे आ चुके हैं। हालांकि, सैम्पल में शामिल कंपनियों की तुलना समूचे सैम्पल से नहीं की जा सकती, क्योंकि रिटर्न की अवधि लिस्टिंग की तारीख अलग-अलग होने की वजह से भिन्नता रखती है।

मसलन, कॉटन फैब्रिक और गारमेंट निर्माता बैंग ओवरसीज फरवरी 2008 में अपनी लिस्टिंग के वक्त से 207 रुपए के अपने ऑफर प्राइस से 84 फीसदी लुढ़क चुके हैं। इसकी तुलना यूरो मल्टीविजन के शेयर भाव में आई 78 फीसदी गिरावट से नहीं की जा सकती, जो अक्टूबर 2009 में सूचीबद्ध किया गया था। वजह यह है कि लिस्टिंग की अवधि में अंतर था।

अगर आंकड़ों के हिसाब से चलें, तो छोटी आईपीओ के मामले में हालात काफी खराब दिखते हैं। पूंजी का जोखिम इक्विटी बाजारों की ऐसी हकीकत है, जिससे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता, लेकिन लिस्टिंग के बाद रिटर्न देने के मामले में 20 फीसदी की कामयाबी दर इन कंपनियों के कारोबार की गुणवत्ता और प्रबंधन पर गंभीर सवाल खड़े करती है।

विश्लेषण के मुताबिक सैम्पल में शामिल आधे से ज्यादा कंपनियां हालिया तिमाही में ऑपरेटिंग और शुद्ध स्तर पर मुनाफे में ग्रोथ दर्ज कराने में असफल साबित हुई हैं। कई कारण हो सकते हैं, जिनके कारण इन कंपनियों की ग्रोथ पर असर पड़ने की आशंका है। इनमें मुख्य रूप से बड़े और प्रतिष्ठित खिलाडि़यों से प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता न होना शामिल है। ऐसा आकार छोटा होने और मजबूत ब्रांड की गैरमौजूदगी की वजह से मुमकिन है।

सेक्टर संबंधित कारणों के चलते भी ग्रोथ पर असर पड़ने की आशंका है। मसलन, बीते तीन साल के दौरान टेक्सटाइल सेक्टर में मांग में कमी ने ज्यादातर टेक्सटाइल आईपीओ का प्रदर्शन खराब बना दिया है। टेक्नोलॉजी के मोर्चे पर कम प्रयोग एक और वजह हो सकती हैं, जिससे पुरानी प्रौद्योगिकी के आधार पर बनने वाले कंपनी के उत्पादों की मांग में कमी दर्ज की गई है। उदाहरण के लिए रिकॉडेर्बल कॉम्पैक्ट डिस्क (सीडीआर) जैसी ऑप्टिकल मीडिया स्टोरेज डिवाइस बनाने वाली यूरो मल्टीविजन को ही ले लीजिए।

फ्लैश मेमोरी आधारित मास स्टोरेज डिवाइस के प्रसार की वजह से यूरो सीडीआर के लिए दुनिया भर में आपूर्ति ज्यादा होने की वजह से मांग की संकट का सामना कर रही है। कंपनी ने पिछली सभी तीन तिमाहियों में घाटा दर्ज कराया है। इन कारकों पर ध्यान रखते हुए निवेशकों को छोटे आईपीओ में निवेश करते वक्त अत्यधिक सतर्कता बरतने की जरूरत है। एक समस्या यह है कि आईपीओ के चरण में कंपनी की असल वैल्यू का पता लगाना मुश्किल हो जाता है, जबकि शेयर बाजार में कंपनी के सूचीबद्ध होने के बाद ऐसा करना तुलनात्मक रूप से आसान हो जाता है।

यह आईपीओ के दावेदारों के लंबी अवधि के प्रदर्शन को लेकर भी सच है। आईपीओ चरण में होने वाली ज्यादातर कंपनियां सेल्स और मुनाफे में आकर्षक ग्रोथ के दौर में रहती हैं और निवेशकों के आईपीओ में निवेश करने के लिए आकर्षित होने की यह अहम वजह होती है। हालांकि, यह बात भी सच है कि निवेशक आईपीओ चरण के दौरान भी कुछ तरह की जांच-परख करते हैं। रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस काफी मूल्यवान जानकारियां मुहैया कराता है, जो निवेशकों को मैनेजमेंट की गुणवत्ता और कंपनियों की कारोबारी रणनीतियों की गंभीरता का अंदाजा लगाने में मदद देती है।

ऐसे निवेशकों की मदद करने के लिए, जो पहले ही छोटे आईपीओ में पैसा लगाकर घाटे का मुंह देख चुके हैं, हम ऐसी कंपनियों के मौजूदा स्तर और भावी संभावनाओं की संक्षिप्त जानकारी मुहैया करा रहे हैं। हमने ऐसी कंपनियां चुनी हैं, जिन्होंने 2008 और 2010 के बीच की अवधि में 50 करोड़ से 100 करोड़ रुपए के बीच रकम जुटाई है।

निवेशकों की झोली भरने में नाकाम रहे आईपीओ की बात करने के साथ-साथ यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि कुछ ऐसे दिग्गज निकले, जिन्होंने इनवेस्टर को निराश नहीं किया। ऐसे कुछ छोटे आईपीओ हैं, जिन्होंने लिस्टिंग के बाद शेयर बाजार पर बढि़या प्रदर्शन किया है, भले बाजार में उठापटक की स्थिति थी। इनमें वी गार्ड इंडस्ट्रीज, किरी डाइस एंड केमिकल्स और प्रकाश स्टीलेज शामिल हैं।
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Source : इकनॉमिक टाइम्स