Monday, April 16, 2012

जीएस सरीन : टॉस से पहुंचे सिंगापुर, मेहनत से बने 900 करोड़ की कंपनी के मालिक

कारोबार के लिए दुबई जाना चाहिए या सिंगापुर ? 
जीएस सरीन इस मुद्दे को लेकर पसोपेश में थे। अपने ट्रेवल एजेंट की सलाह पर उन्होंने देश चुनने का फैसला किया। सिक्का उछला.. फैसला हुआ सिंगापुर के पक्ष। सिक्का भले ही जमीन पर गिरा हो पर जीएस सरीन का कॅरियर आसमान पर पहुंच गया। 13 साल में 900 करोड़ रुपए के सालाना टर्नओवर वाली कंपनी के मालिक बन चुके सरीन की उड़ान को फोब्र्स पत्रिका ने नई ऊंचाई दी है।
 
पत्रिका ने हाल ही जारी अपनी ‘द एशिया’ज 25 हॉटेस्ट पीपुल्स इन बिजनेस’ की सूची में उन्हें शामिल किया है। मध्यप्रदेश के सरीन सिंगापुर में ओमनी यूनाइटेड के सीईओ व प्रेसिडेंट हैं। 1986 में मराठा रेजीमेंट की लाइट इंफेंट्री को ज्वाइन कर सेना के कड़े अनुशासन और दिनचर्या को जीने वाले सरीन अब या तो कापरेरेट्स मीटिंग्स में व्यस्त रहते हैं, या बिजनेस टूर पर रहते हैं।
 
उनकी कंपनी कई देशों में टायर सप्लाई कर रही है। उनके ब्रांड के टायर कई कारों को रफ्तार दे रहे हैं। दैनिक भास्कर ने जब उनसे उनकी इस कारोबारी सफलता को लेकर मोबाइल फोन पर चर्चा की तो सिंगापुर में मौजूद सरीन ने कहा - कुछ अलग कर गुजरने की जिद ने ही उन्हें यहां पहुंचाया।
 
वह दूसरों के साथ अच्छे से पेश आने को ही अपनी सफलता का राज बताते हैं। एक जगह व्याख्यान देते वक्त एक स्टूडेंट ने उनसे पूछा कि यदि दूसरों के संग अच्छा बर्ताव ही सफलता का मंत्र है, तो फिर शिक्षा की जरूरत क्या है? इस पर सरीन का जवाब था, ‘मृदुभाषी होने के साथ शिक्षित होना बेहतर है, न कि शिक्षित होते हुए दूसरों के साथ मृदुभाषी न होना।’ सफलता का यह लंबा सफर तय करने वाले सरीन आज भी सालों पहले ट्रेवल एजेंट के साथ हुए टॉस को नहीं भूले हैं, जिसने उनकी नियति बदलने का काम किया।
 
पढ़ाई के लिए फीस की जद्दोजहद
 
भिण्ड में जन्मे जीएस सरीन के पिता सुरेंद्र सिंह सरीन मध्य प्रदेश सरकार में सचिव पद पर रहे हैं। सरीन ने कक्षा चार से बारहवीं तक की पढ़ाई उज्जैन सेंट मैरी स्कूल से पूरी की। यह 70 के दशक की बात है। उनका इंदौर के प्रतिष्ठित डेली कॉलेज में पढ़ाई करने का ख्वाब था। उस वक्त इस कॉलेज की सालाना फीस 11 हजार रुपए हुआ करती थी।
 
घरेलू आर्थिक स्थितियों को देखते हुए उन्हें अपने पिता और परिवार के दूसरे बड़े-बुजुर्गो को समझाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। अंतत: उनके पिता और दादी डेली कॉलेज में पढ़ाई के लिए जरूरी धनराशि जुटाने पर सहमत हो गए। यहां पढ़ते हुए उनका झुकाव एनसीसी की ओर हुआ, जहां से वे भारतीय सेना की तरफ आकर्षित हुए। इसके बाद वे भोपाल में मोतीलाल विज्ञान महाविद्यालय चले आए। जहां से उन्होंने ९४ प्रतिशत अंकों के साथ विज्ञान में स्नातक किया।
 
पहला सौदा अमोनिया का
 
बिजनेस टूर के दौरान किसी ने उनसे तरल अमोनिया की आपूर्ति की संभावनाओं के बारे में पूछा। इस उत्पाद के बारे में कुछ न जानते हुए भी उन्होंेने इसके लिए हामी भर दी। भारत लौटने पर सरीन मुंबई में तरल अमोनिया की आपूर्ति करने वाली कंपनी राष्ट्रीय केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स के सेल्स महाप्रबंधक से मिले। यहीं उनकी मुलाकात अमोनिया गैस को तरल अमोनिया में बदलने के व्यवसाय करने वाले व्यक्ति से हुई और फिर एक नए कारोबार से जुड़ गए। पहला ही सौदा तरल अमोनिया की सप्लाई का हुआ।
 
..और दौड़ने लगे टायर
 
सिंगापुर में उन्होंने टायर-टच्यूब के व्यवसाय से नए कारोबार को समझने की कोशिश की। भारत में यह कारोबार असंगठित था। सबसे पहले सरीन ने भारत के कारोबारियों के साथ इसे संगठित किया फिर टायर के कारोबार में प्रवेश किया। धीरे-धीरे बिजनेस बढ़ता गया और 1999 में एक कंपनी स्थापित की। दो साल बाद ही उन्होंने कंपनी बेच दी। फिर उन्होंने टायर एक्सचेंज करने वाली कंपनी के तौर पर जेपी मॉर्गन के साथ बिजनेस शुरू किया। इस तरह वह वैश्विक स्तर पर 12.50 लाख करोड़ रुपए के टायर उद्योग से आ जुड़े।
 
75 हजार रुपए और सिंगापुर की उड़ान
 
कुछ दिनों बाद किसी ने उनसे टायरों की आपूर्ति के बारे में जानना चाहा तो उन्हें इस विचार में दम लगा, क्योंकि टायरों की मांग लगातार बनी रहती है। इसके बाद मध्यप्रदेश के बैतूल में स्थित एक फैक्टरी से उन्होंने अपना टायर बिजनेस शुरू किया। उन्हें अहसास हुआ कि टायरों की मांग जबर्दस्त है और वह उसके मुका बले आपूर्ति नहीं कर पा रहे हैं।
 
इसकी एक वजह यह भी थी कि अन्य टायर निर्माता कंपनियां उन्हें बतौर प्रतिद्वंद्वी देख रही थीं, न कि एक ग्राहक के तौर पर। यह देख उन्होंने देश छोड़कर खाड़ी देश जाने, वहां से टायरों का बिजनेस शुरू करने का फैसला किया। उनके इस निर्णय को जानने के बाद उनके ट्रेवल एजेंट ने बजाय दुबई के सिंगापुर से उन्हें व्यवसाय शुरू करने की सलाह दी। दोनों में काफी चर्चा हुई, अंतत: तय हुआ कि देश का चयन टॉस के आधार पर किया जाए, परिणाम सिंगापुर के पक्ष में आया। सरीन अपनी पत्नी और बच्चों को इंदौर में छोड़ महज 75 हजार रुपए की मामूली रकम के साथ सिंगापुर आ गए।
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स्रोत : दैनिक भास्कर